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१२८. पत्र : फ्रांसिस्का इटांडेनटको

[पत्रोत्तरका पताः ]
 
आश्रम, साबरमती
 
९ दिसम्बर, १९२६
 

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आपको खादी नहीं मिली मुझे इसका बहुत खेद है। मेरा खयाल था कि मैं उसके लिए समुचित प्रबन्ध कर चुका हूँ। आपका पत्र पानेपर कि आपको अभीतक स्वामीसे, जो उस समय यात्रापर था, खादी नहीं मिली है, मैंने स्वामीसे कह दिया है और मैं आशा करता हूँ कि आपको पत्रके मिलनेतक खादी मिल गई होगी।

आपने जिस 'कान्शन्स' नामक अखबारका उल्लेख किया है, उसमें मैंने किसी किस्मकी कोई चीज छपने नहीं भेजी। ऐसा कोई अखबार है, इसकी जानकारी भी मुझे आपसे ही मिली। कितने ही लोग मेरी अनुमति या जानकारीके बिना मुझसे सम्बन्धित तमाम बातें लिख दिया करते हैं ।

आप मुझे सुविधानुसार सूचित करें कि जो खादी आपको मिली, वह वहाँ काफी उपयोगी रही या नहीं। निश्चय ही उस जलवायुमें आपको ऐसे सभी ऊनी कपड़ोंका इस्तेमाल करनेमें नहीं झिझकना चाहिए जो आपके लिए जरूरी हों। खद्दर सम्बन्धी नियम तो एकदेशीय है, सर्वदेशीय नहीं । भारतमें जब हमारी अपनी कपास है, और उससे कपड़ा बना सकनेकी योग्यता हममें है, तो फिर हमें ऐसा कपड़ा नहीं ही पहनना चाहिए जो यहाँका बना नहीं है, बाहरसे मँगाया हुआ है। और सो भी तब जब कि करोड़ों लोग अभी धंधेके अभावमें निठल्ले हैं, और उन्हें खद्दरके उपयोगमें लगाना उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

हृदयसे आपका,
 

श्रीमती फ्रांसिस्का इटांडेनट

ट्राउटमान्सडॉर्फगास नं० १

ग्राज (श्टीरियामें)

ऑस्ट्रिया

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७६५) की माइक्रोफिल्मसे ।