पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/४३९

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१३३. पत्र : जी० वी० केतकरको

[ पत्रोत्तरका पता : ]
 
आश्रम, साबरमती
 
१० दिसम्बर, १९२६
 


प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। गीता-दिवस मनानेका आपका विचार और जिस ढंगसे आप उसे मनाना चाहते हैं वह मुझे बिलकुल ठीक नहीं लगता। इसके अलावा 'गीता' की जो व्याख्या आपने की है उससे मैं सहमत नहीं हूँ। 'गीता' को किसी लौकिक युद्ध-क्षेत्रमें दो विरोधी वंशोंके सशस्त्र संघर्षका वर्णन मात्र मानकर मैं उस अलौकिक पुस्तकका महत्त्व कम नहीं कर सकता ।

हृदयसे आपका,
 
मो० क० गांधी
 


अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ९८२) से ।

सौजन्य : जी० वी० केतकर


१३४. पत्र: ए० ए० पॉलको


[ पत्रोत्तरका पता : ]
 
आश्रम, साबरमती
 
१० दिसम्बर, १९२६
 

प्रिय मित्र,

मुझे अपनी प्रस्तावित चीन यात्राके सम्बन्धमें क्या हो रहा है इसका ठीक पता नहीं है। अगले वर्ष भारतमें मेरा कार्यक्रम बहुत व्यस्त है और ऐसी ही अन्य कई विचारणीय बातें हैं; इसलिए अब मैं जल्दीसे-जल्दी निश्चित रूपसे यह जानना चाहूँगा कि क्या मुझे चीन जाना ही है और जाना है तो कब । जिन मित्रोंका आपसे पत्र- व्यवहार चल रहा है आप कृपया उन्हें स्पष्ट लिख दें कि महज इसलिए कि उन्होंने मेरी यात्राकी योजना बनाकर मुझे एक प्रकारसे निमंत्रित भी कर दिया है, वे अपनेको उस प्रस्तावसे बँधा हुआ महसूस न करें। इसलिए यात्राके कार्यक्रमकी योजना केवल तभी पूरी की जाये जब उसकी सचमुच ही जरूरत मालूम पड़े। महज दिखावटी प्रदर्शनोंसे में ऊब गया हूँ। मुझे भाषण देनेकी कोई इच्छा नहीं है। मुझे केवल एक

१. ए० ए० पॉलके मार्फत गांधीजीको चीन यात्राका निमंत्रण मिला था और गांधीजी १९२७ की शरद् ऋतुमे वहाँ जानेको राजी हो गये थे, देखिए खण्ड ३१ ।