कलकत्तेमें मेरा एक मित्रके पास ठहरनेका विचार है। जब में कलकत्तेमें रसा रोडपर ठहरा था उस समय वे अकसर वहाँ आते रहते थे और उन्होंने मुझसे वायदा करा लिया था कि अगली बार जब कलकत्ता जाऊँगा, तो उनके पास ठहरूँगा । उनका नाम व पता है : श्रीयुत खंडेलवाल, ५० हरीश मुकर्जी रोड, कलकत्ता ।
डा० वि० च० राय
३६, वेलिंगटन स्ट्रीट
कलकत्ता
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७५४) की माइक्रोफिल्मसे ।
१३६. पत्र : डी० के० फड़केको
प्रिय मित्र,
आपका पत्र मिला और श्री केलकर रचित लोकमान्यकी जीवनीका आपने जो अनुवाद किया है उसके पृष्ठ भी मिले ।
मैं चाहूँगा कि आप वर्धा आयें और पास ही में कोई जगह किरायेपर ले लें, फिर मुझे सुबह भोरसे लेकर रातको ९ बजेतक काम करते देखें और यदि आप पायें कि मेरे पास कुछ क्षण भी अवकाशके रहते हैं, तो आप उन्हें, अपनी पुस्तक पढ़नेके लिए और फिर भूमिका लिखनेके लिए लगवा सकते हैं। लेकिन यदि आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो आपको मेरी बातपर यकीन कर लेना चाहिए कि मेरे पास कोई अवकाश नहीं है और जो काम मैंने पहलेसे ही हाथमें ले रखे हैं, उन्हें ही पूरा करनेके लिए मुश्किलसे समय मिलता है। इसलिए आप मुझे अवश्य ही क्षमा कर दें ।
श्री डी० के० फड़के
६, कोचीन स्ट्रीट
फोर्ट
बम्बई
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७५५) की माइक्रोफिल्मसे ।