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१३७. पत्र : मीराबहनको

शनिवार [ ११ दिसम्बर, १९२६]
 

चि० मीरा,


तुम्हारे चारों पत्र मिल गये । दो की पहुँच मैं पहले ही दे चुका हूँ ।

मेरे खयालसे तुम्हें 'चि०' का अर्थ मालूम है । वह 'चिरंजीवी' का संक्षेप है और उसका अर्थ है 'बहुत जीनेवाला'। यह आशीर्वाद घरके बड़े लोग छोटोंके नामके पहले लगाते हैं ।

मुझे तुम्हारे सारे पत्र पसन्द आये । मुझे खुशी है कि तुम्हें मुसलमान मित्रके यहाँ जानेका जल्दी ही मौका मिल गया । कुमारी ग्रोवरका नाम मैं बिलकुल ही भूल गया था। मुझे खुशी है कि तुम वहाँ गई। वह एक भली और स्नेही लड़की है और उसे अपने कामकी लगन है ।

तुम्हें चाहिए कि अपनी दिनचर्या मुझे लिखो और प्रार्थना, अध्ययन तथा भोजन- का हाल बताओ। लिखो कि तुम क्या खाती हो ? तुम्हारा पेट कैसा रहता है ? कितना दूध लेती हो ? भोजन कब करती हो ? वहाँ मच्छर हैं या नहीं? क्या तुम नियमसे घूमने जाती हो ? कुछ हिन्दी लिखती हो कि नहीं? क्या कोई तुम्हें पढ़ाता है ? तुम्हें कौन-कौनसे फल मिलते हैं ?

संशोधित अध्याय मुझे समयपर मिल गया। तुम्हें डाकका समय मालूम कर चाहिए ।

मैं इसी महीनेकी २१ तारीखको वर्धा छोड़ दूंगा । मोतीलालजीका आग्रह है कि मैं गौहाटी जाऊँ । उम्मीद है कि तुम्हें 'यंग इंडिया' की अपनी प्रति नियमित रूपसे मिल रही होगी । न मिलती हो तो स्वामीको लिखना, और मृत्युंजयको लिख देना कि ध्यान रखें। मैं मान रहा हूँ कि तुम्हें 'हिन्दी नवजीवन' भी मिल रहा होगा ।

उर्दू लिपि भूल मत जाना ।

अमेरिकी मित्र, दोनों माँ-बेटी, अभी यहीं हैं। मेरा खयाल है कि मैंने उनके जानेकी बात तुम्हें लिखी थी। बेटी एक महत्त्वकी पाठशालामें शिक्षिका है। वे लोग कल जा रही हैं। मेरे कारण जमनालालजीके यहाँ ४० से ज्यादा मेहमान हैं । बेचारी जानकी बहन !

मेरी तन्दुरुस्ती असाधारण तौरपर अच्छी है। सुबह-शाम नियमित व्यायाम होता है।

१. डाकखानेकी मुहरके अनुसार।

२. आत्मकथा के अध्याय; देखिए “पत्र : मोरा बहनको”, ६-१२-१९२६ ।

३. जमनालालजीकी पत्नी।