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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस संग्रह में संकलित तथ्य हिन्दू धर्मके अनुयायियोंके लिए लज्जाका विषय है। संग्रहके पाठक तुरन्त देख सकेंगे कि अन्त्यजोंके प्रति अपने धर्मको हम कितना ज्यादा भूल गये हैं। कोई अपरिचित व्यक्ति भी यह कहेगा कि जहाँ लोगोंको पानी पीनेकी भी पूरी सुविधा नहीं मिल सकती, वहाँके लोग धर्मका ककहरा भी नहीं जानते।

पाठक देखेंगे कि अनेक गाँवोंमें ईसाई पादरी काम कर रहे हैं। यह उनके लिए जितनी गौरवकी बात है, उतनी हमारे लिए शर्मकी है। आज हम जो अन्त्यज सेवा कर रहे हैं वह इस दृष्टिसे भले ही ठीक मानी जा सकती है कि पहले हम इस दिशामें कुछ करते ही नहीं थे। लेकिन जबतक एक भी गाँव ऐसा है जहाँ हिन्दू धर्मानुयायियोंकी ओरसे कोई अन्त्यज सेवक न हो और जहाँ उनके लिए पानीकी व्यवस्था नहीं है, तबतक हमें नीचा देखना ही पड़ेगा ।

इस संग्रह- कार्यको भाई अमृतलाल ठक्करने भाई परीक्षितलालको[१] सौंपा था । परीक्षितलाल विद्यापीठके स्नातक हैं। विद्यापीठके प्रत्येक स्नातकके लिए यह विशाल कार्यक्षेत्र पड़ा हुआ है। ग्रामसेवा ही सच्ची देशसेवा है क्योंकि हिन्दुस्तान अपने सात लाख गाँवों में बसा हुआ है। हिन्दुस्तान शहरोंमें नहीं बसता; हमारे ये शहर तो यूरोपके शहरोंकी अत्यन्त घटिया आवृत्ति मात्र हैं और जो लोग यह जानते हैं कि गाँवसेवाका आरम्भ खादी और अन्त्यज सेवासे ही होता है, वे सचमुच इस विषयके मर्मको जान गये हैं।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, १२-१२-१९२६

१४०. पत्र : हरिइच्छाको

वर्धा

मार्गशीर्ष सुदी ७, १९८३ [ १२ दिसम्बर, १९२६ ]


चि० हरिइच्छा,

मैंने तुम्हारे इस रास-गीतको सहेज कर तो रखा ही था । पहुँच की खबर देना । आशा है कि तुमने अपना हिन्दीका अभ्यास जारी रखा होगा और प्रार्थनामें निय- मित रूपसे शामिल होती होगी। चन्दन आदिकी तबीयत अच्छी हो गई होगी ? सब बहनें कातती तो हैं न ?

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४९०९) से ।

सौजन्य : हरिइच्छा कामदार

  1. परीक्षितलाल मजमूदार, जिन्होंने बादमें अनेक वर्षौंतक गुजरात हरिजन सेवक संघके अध्यक्ष पदपर कार्य किया ।