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अन्त्यज सर्वसंग्रह

होती है। खादी राजाओंसे निःशब्द और नम्रतापूर्वक जो बात कह रही है वह बात लम्बे-लम्बे भाषणों और लेखोंसे भी नहीं कही जा सकती। लेकिन खादीका भाषण जो जानता है वही सुन सकता है। उस मधुर भाषणको सुनने के लिए कार्यके प्रति उत्कट लगन और एकाग्रताकी जरूरत है। अस्पृश्यता निवारणका मतलब है आत्मशुद्धि अर्थात् गरीबोंके साथ हार्दिक ऐक्य । इस शक्तिकी तुलनामें मुझे विधान परिषदोंके भाषण निर्जीव मालूम होते हैं ।

लेकिन यह तो मेरे निजी विचार हैं। उन्हें मैं काठियावाड़ियों और श्री अमृतलाल ठक्करको समर्पित करता हूँ। इनमें से जो उन्हें अच्छा लगे उसे वे स्वीकार करें तथा शेषका त्याग करें ।

मैंने भावनगरमें परिषद्से राजनीतिक कार्य मुझे सौंपनेके लिए कहा था । परिषद्ने मुझे वह सौंप दिया। मैं मानता हूँ कि उसमें परिषद्ने भूल नहीं की। किन्तु मुझसे ऐसा कुछ नहीं हो सका है जो मैं यहां बताऊँ। मैंने हार खाई है, कुछ निराशा हुई है, लेकिन मुझे और कोई मार्ग नहीं सूझा है । मार्ग तो यही था, और है । सारे काठियावाड़का प्रतिनिधित्व करनेवाली परिषद् इतना ही कर सकती है, वह विनय ही कर सकती है। विभिन्न राज्योंकी जनता अपनी-अपनी जगह कुछ विशेष कर सकती है, यह एक अलग बात है। अपने-अपने राज्यकी राजनीतिक परिस्थितियोंसे परिचित उन राज्योंके कार्यकर्त्ता कुछ कर सकते हैं और उन्हें करना भी चाहिए। राजनीतिक परिषद्के कार्यक्षेत्रकी मैंने जान-बूझकर मर्यादा तय की है। इसके बाहर जाना चाहिए अथवा नहीं, इस बातका विचार हमारे अध्यक्ष महोदय करेंगे और यदि वे हमें नया मार्ग बता सकेंगे तो बतायेंगे ।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, १२-१२-१९२६


१३९. अन्त्यज सर्वसंग्रह

श्री अमृतलाल ठक्करके अन्त्यज सेवा मण्डलकी ओरसे 'अन्त्यज सर्वसंग्रह' प्रका- शित हुआ है उसे मैंने जान-बूझकर 'नवजीवन' में अक्षरशः प्रकाशित किया है। मुझे आशंका है कि कितने ही पाठक उसे देखकर चिढ़े होंगे और कितने ही चिढ़े तो नहीं होंगे लेकिन उन्होंने उसे पढ़ा ही नहीं होगा। इन दोनों वर्गोंके पाठकोंसे में आग्रहपूर्वक अनुरोध करता हूँ कि वे 'नवजीवन' के पिछले अंकोंको ढूंढ़कर यह संग्रह पढ़ जायें । पढ़नेवालोंको ही इस चीजकी कुछ कल्पना हो सकेगी कि इस संग्रहके लिए कितनी मेहनत हुई है। अकेले आनन्द ताल्लुकेमें ही ८८ गाँवोंकी जाँच हुई है और एक-एक गाँवमें सूक्ष्मतासे जाँच करना हो तो उसमें बहुत सारा समय तो लगाना ही पड़ता है।

१. भावनगर में परिषद्का अधिवेशन १९२५ में हुआ था।

२. नवम्बर ७, १४, २१, २८ और दिसम्बर ५, १९२६ के अंकों में ।

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