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पत्र : बनारसीदास चतुर्वेदीको

मैं तो केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि मेरी जाँचके बाद भाई शिवजीने जो व्यवहार किया है उससे, उनके विरुद्ध मेरी राय दृढ़ होती गई है। पहले तो मैं न्यायाधीश था और अन्य लोग जिन्होंने भाई शिवजीको पैसे दिये थे फरियादी थे। जब मेरी राय भाई शिवजीके गले नहीं उतरी, तब कहा जा सकता है कि मैं भी फरियादी बन गया। अब भाई शिवजी अपने इस उत्तरसे मुझे दोषी मानते दीख पड़ते हैं। लेकिन उन्हें और उन सब लोगोंको, जो लोकसेवकोंके व्यवहारमें थोड़े-बहुत अंशोंमें नीतिके नियमोंका पालन और जनताके द्रव्यका यथोचित उपयोग देखनेके इच्छुक हैं, जानना चाहिए कि पंच नियुक्त करनेका प्रस्ताव भी भाई शिवजीके हितार्थ था। भाई शिवजी मेरी दृष्टिमें अभी भी दोषी हैं। दोष भी गम्भीर हैं, जिनमें से कुछेक दोषोंको भाई शिवजीने स्वयं मेरे समक्ष स्वीकार किया है। जहाँतक मुझे मालूम है, पंचनामा जिसमें में हस्ताक्षर कभी नहीं कर सकता था, भाई शिवजीका ही तैयार किया हुआ था। भाई शिवजीने अपने इस पत्रको लिखकर जलेपर नमक छिड़का है और अपने अपराधमें इजाफा किया है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ७-११-१९२६

६. पत्र : बनारसीदास चतुर्वेदीको

कार्तिक शुक्ल ३ [१९]८३ [८ नवम्बर, १९२६]

भाई बनारसीदासजी,

आपका पत्र मीला है। आपका द० आ० जाना मुझे प्रिय है। परंतु जिस कारण से जाना चाहते हो मुझे अनुचित सा प्रतीत होता है। यदि अखबारोंमें लीखनेसे ही आजीविका पैदा करना चाहते हो तो द० आ० जानेसे हेतु सफल नह होगा। अच्छा तो यह है कि कीताब लीखकर द्रव्योपार्जन कीया जाय या कोई नौकरी लेकर।

आपका,
मोहनदास गांधी

पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी

फीरोजाबाद

(यू० पी०)

मूल पत्र ( जी० एन० २५७४ ) की फोटो- नकलसे।

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