७. पत्र : जमनालाल बजाजको
कार्तिक सुदी ३, १९८३ [८ नवम्बर, १९२६ ]
तुम्हारा पत्र मिला है। चुनावकी बात तो मैं भूल ही गया था। तुम्हें जैसा ठीक लग वैसा करनेमें तो में कोई बाधा नहीं देखता। मैं इसमें कोई भाग नहीं ले सकता इसलिए मैंने तो सबको 'ना' ही लिख दिया है। तुम्हें बहुत जगह घूमना फिरना पड़, इस बातको में पसन्द नहीं करता। उससे तुम्हारी तबीयतको नुकसान हो सकता है।
बा का स्वास्थ्य तो बहुत अच्छा हो गया है। इसलिए चिन्ताका कोई कारण नहीं है। देखेंगे, मेरे आनेपर क्या होता है। उम्मीदवार तो कई होंगे। आवहवा बदलनेके खयालसे, साथमें लक्ष्मीदासको लाना चाहता हूँ।
बापूके आशीर्वाद
८. पत्र : सैयद जहीरुल हक़को
साबरमती
१० नवम्बर, १९२६
आपके पत्रके[१] लिए धन्यवाद। इससे मेरी अहंभावनाको सन्तोष मिल सकता है, लेकिन मैं समझता हूँ कि मुझमें ऐसी कोई भावना नहीं है। में अपनी अयोग्यता और सीमाओंको जानता हूँ। अगर मेरे बीचमें पड़नेसे सफलताकी जरा भी गुंजाइश होती तो मैं अपने एकांतवासको उसके आड़े नहीं आने देता। लेकिन मुझे वैसी कोई गुंजाइश नहीं दिखाई देती। इसलिए मैं चुपचाप बैठा हुआ प्रार्थना कर रहा हूँ।
मेरे लिये चरखेकी कीमत लोगोंके प्राणोंसे ज्यादा नहीं है। जैसे बच्चा अपनी माँकी छातीसे लगा रहता है, वैसे ही मैं चरखेसे चिपका हुआ हूँ; क्योंकि मेरा विश्वास
- ↑ पटनाके सैयद जहीरुल हक़ने २५ अक्तूबर, १९२६ के एक खुले पत्रमें दुर्गापूजाके अवसरपर हावड़ाके हिन्दू-मुस्लिम दंगोंकी ओर गांधीजीका ध्यान खींचा था और उनसे अपील की थी कि 'आप अपना आश्रम छोड़िए और राष्ट्र-रक्षककी तरह लोगोंको गहरी खाई में गिरनेसे बचाइए।' यह खुलापत्र और गांधीजीका जवाब हिन्दूमें "हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य: हस्तक्षेपको अपीलपर गांधीजीका जवाब" शीर्ष कसे छपा था। यह पत्र-व्यवहार सर्वलाइट, २६-११-१९२६ में भी छपा था।