पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/४५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१४५. पत्र : ता० ना० नैथानीको

[ पत्रोत्तरका पता : ]
 
आश्रम, साबरमती
 
१३ दिसम्बर, १९२६
 

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मुझे उक्त स्वामीजी या उस घटनाके बारेमें कोई बात याद नहीं पड़ती। लेकिन यह तो सम्भव है कि यदि वे आश्रम में आये हों तो मैंने उनसे पूछा हो कि क्या वे चरखा कातते हैं। लेकिन मेरे लिए उनकी तरफसे अपनी पीठ घुमा लेना मुमकिन नहीं है। मैं उस समय काममें व्यस्त ही रहा होऊँगा । आजकल में समय बचानेके खयालसे मिलनेवालोंसे सूत कातते समय मुलाकात करता हूँ। मैं उनसे बात करता जाता हूँ और साथ ही कातता भी रहता हूँ ।

कुछ चित्रोंमें मुझे भगवान् कृष्णके रूपमें प्रस्तुत किये जानेकी एक शिकायत मिलनेकी बात मुझे बखूबी याद है; और यह भी याद है कि मैंने उसके खिलाफ जोरदार शब्दोंमें लिखा था। लेकिन इस मामलेमें मैंने कितनी पंक्तियाँ लिखी थीं सो तो याद नहीं है। मैं नहीं समझता कि किसी लेखके प्रभावका मूल्यांकन उसकी लम्बाईसे किया जाना चाहिए ।

अबतक मेरे पास कोई भी ऐसा महात्मा नहीं आया जिसे मैं एकदम अपना गुरु कह उठता ।

हृदयसे आपका,
 

ताराचन्द नानकराम नैथानी

हलानी (द्वारा) मेहराबपुर

उ० प० रेलवे

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७५३) की फोटो-नकलसे ।