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१४६. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको

वर्धा
 
सोमवार [ १३ दिसम्बर, १९२६]
 

सुज्ञ भाईश्री,

यह तो आप जानते ही हैं कि चि० मथुरादास आपके पंचगनीके बंगलेमें रह रहा है, अभीतक उसने उसका कोई भाड़ा नहीं दिया है। कुछ-न-कुछ भाड़ा अवश्य दिया जाना चाहिए, ऐसा मेरा तथा उसका आग्रह है। ‘सीजन' के समय बंगला खाली कर देनेके लिए मैंने उससे कहा है, इसलिए फरवरीके अन्ततक बंगला खाली कर देनेकी तैयारी चल रही है। तो, मैं चाहूँगा कि आप भाडेके सम्बन्धमें मुझे अवश्य लिखें । स्वास्थ्यके बारेमें भी लिखिएगा।

मोहनदासके वन्देमातरम्
 

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३२०८) की फोटो-नकलसे ।

सौजन्य : महेश पट्टणी

१४७. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

वर्धा
 
मार्गशीर्ष सुदी ११, १९८३, १३ दिसम्बर, १९२६
 


बहनो,

आज भी नाश्ता करके तुम्हारा स्मरण कर रहा हूँ। ठीक ६ बजकर ५० मिनट यानी तुम्हारी प्रार्थनाका वक्त हो गया । और सब भूल जायें, पर यह भूलें। इसमें परस्पर एक-दूसरेका और सबका ईश्वरके साथ सहयोग है। यह सच्चा स्नान है। जैसे शरीर बिना धोये मलिन होता है वैसे ही हृदयको प्रार्थना द्वारा घोये बिना स्वभावत: स्वच्छ आत्मा मलिन दिखाई देती है। इसलिए इस वस्तुको कभी न छोड़ना। सुबहके चार बजे सबके बीच सहयोगका मौका है, मगर उस प्रार्थनामें तमाम बहनें आने में असमर्थ होती हैं। सात बजेकी प्रार्थनामें बहनों-बहनोंके बीच सहयोगका मौका है। उसमें सब आ सकती हैं। बहनोंके बीचका सहयोग अति आव श्यक है।

यहाँ दो अमेरिकी स्त्रियाँ, जो वहाँ एक दिन रह चुकी हैं, आई थीं। तीन दिन रहकर कल गईं । वे माँ-बेटी हैं। लड़की कुमारी है। वह पच्चीस वर्षकी है और

१. डाककी मुहरसे ।