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भाषण : कांग्रेस अधिवेशन, गौहाटी में

कि खद्दर अनिवार्य है या नहीं। मेरी रायमें तो यही एक सूत्र है जो कांग्रेस और जन-साधारणको परस्पर जोड़ता है। चरखा संघके रजिस्टरमें ५० हजारसे ऊपर ऐसे स्त्री-पुरुषोंके नाम हैं जिन्हें कातनेका काम दिया जा रहा है। कांग्रेसको खद्दरकी इस शक्तिका पूरा उपयोग करना चाहिए और स्वराज्य प्राप्त करनेकी दृष्टिसे उस शक्तिको बढ़ाना चाहिए। स्वराज्य कोई डानिंग स्ट्रीटसे नहीं टपकेगा, वह तो कांग्रेसको सूतके कोमल तन्तु द्वारा जनताके साथ जोड़नेपर ही मिलेगा। में स्वीकार करता हूँ कि मताधिकारका जो नियम इस समय है उससे काम नहीं चलेगा, क्योंकि वह तो [जनताके लिए ] अपमानकारी है। बहुतसे स्थानोंमें होता क्या है कि कांग्रेस कमेटीके दफ्तरोंके पास ही कुछ गज खद्दरका कपड़ा किरायेपर लेकर या खरीदकर रख दिया जाता है और कमेटीकी बैठकमें भाग लेने और अपना मत देनके लिए दफ्तरमें प्रवेश करने से पहले सदस्य वही खद्दरका कपड़ा पहन लेते हैं।

कृपया मूक जनताका इस प्रकार अपमान न करें। वह पहलेसे ही बहुत अपमा- नित है। यदि आप कांग्रेसजनोंके गुणवान होनेकी अपेक्षा उनका अधिक संख्या में होना महत्त्वपूर्ण मानते हैं तो बेहतर होगा कि कांग्रेससे सूतके चन्देकी यह शर्त बिलकुल ही हटा लेनेको कहा जाये। लेकिन यदि आप गुणवत्ताको उचित समझते हैं तो हमें सदस्यताके लिए सूतकी शर्तको और कड़ा बनाना चाहिए। मैं ऐसा नहीं चाहता कि कांग्रेसजन कांग्रेस छोड़कर अलग हो जायें। मैं तो इस शर्तको कड़ी इसलिए बनाना चाहता हूँ कि वह कांग्रेस संगठनके विकासके लिए आवश्यक है।

पण्डित मोतीलाल नेहरूने जो संशोधन रखा है वह तो ईमानदारीका पक्ष समर्थन ही है। यदि आप खद्दर पहननेमें विश्वास नहीं रखते तो यह आपका परम कर्त्तव्य है कि आप बिना हिचके इस संशोधनके विरुद्ध अपना मत दें; लेकिन मैं तो वर्तमान धाराको हमारे लिए अपमानजनक होनेके सिवा और कुछ नहीं मानता। इस प्रश्नपर विचार करते समय हमें विशिष्ट व्यक्तियोंकी रायको महत्त्व नहीं देना चाहिए। यदि खद्दर अपनी ही शक्तिपर खड़ा हो सकता है तो ठीक, नहीं तो उसे खतम कर देना चाहिए। इसलिए आप लोग विचार करते समय मेरा खयाल न करें। खद्दर रहे चाहे न रहे; मुझे इसकी परवाह नहीं है। लेकिन मुझे कांग्रेसके सम्मानकी परवाह अवश्य है, क्योंकि कांग्रेस एक बड़ी चीज है। चुनावोंमें कैसी भी सफलता मिले, स्वराज्य उससे नहीं आयेगा। कल आपको प्रतिनिधि शुल्क एक रुपयेसे बढ़ाकर पाँच रुपये करना पड़ा था। क्यों? क्या कांग्रेसका कोष इतना खाली हो गया है ? यदि हमें कांग्रेसमें आस्था होती तो हमारी आर्थिक स्थिति कहीं अधिक बेहतर होती । १९२०- २१ में क्या हमारी आर्थिक स्थिति आजकी अपेक्षा कहीं ज्यादा अच्छी नहीं थी ? क्या हमारी आर्थिक स्थितिके इतना गिर जानेका कारण खद्दर है ? मैं आपसे कहूँगा कि आप अपने सीनोंपर हाथ रखकर खुदसे पूछें कि यह अवनति क्यों हुई है? मेरी व्यक्तिगत राय है कि इस प्रस्तावको बिना किसी असहमतिके पास कर देना चाहिए;

१. अभिप्राय डाउनिंग स्ट्रोट, लंदन-स्थित ब्रिटिश प्रधानमंत्रीके घरसे है।