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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नमी और सरदी खूब है। जो खूब चलते-फिरते हैं, वे बीमार नहीं होते। और तो बादमें, और उस वक्त जो याद आ जाये सो ।

बापूके आशीर्वाद
 

गुजराती पत्र (जी० एन० ३६३१) की फोटो-नकलसे ।

१८२. भाषण : कांग्रेस अधिवेशन, गौहाटीमें'

२७ दिसम्बर, १९२६
 

श्री गांधीने कहा कि मुझसे न्यायभाव रखनेकी अपील की गई है। मेरी व्याय भावनाके अनुसार तो सदस्यताके लिए सूत देनेकी शर्तको फिरसे लागू हो जाना चाहिए, साथ ही कताई अनिवार्य कर देनी चाहिए। व्यक्तिगत रूपसे में किसी बातके अधिक परिमाणमें होनेके बजाय उसके अधिक गुणयुक्त होनेको बेहतर मानता हूँ, किन्तु यदि कांग्रेसको गुणकी अपेक्षा संख्या पसन्द है तो मेरा सुझाव है कि जितने ही कम प्रतिबन्ध हों, कांग्रेसके लिए उतना ही अच्छा होगा। इसके विपरीत, यदि आप लोगोंको गुणशीलतामें विश्वास है तो आपको सदस्यताके ऊपर कुछ ऐसे प्रतिबन्ध लगाने चाहिए जिनसे गुणोंका विकास होनेके कारण राष्ट्रीय पुनरुद्धारमें मदद मिल सकती है। कांग्रेस अपने अन्दर सभी पार्टियोंको लाना चाहती है; लेकिन हम कुछ खोकर उन्हें नहीं पाना चाहेंगे। किन्तु इसलिए कोई अपरिवर्तनवादियोंपर या स्वराज्यवादियोंपर यह आरोप न लगाये कि वे कांग्रेसके दरवाजे दूसरोंके लिए बन्द रखना चाहते हैं; क्योंकि आखिरकार सभी राष्ट्रीय संगठनोंमें सदस्यता सम्बन्धी अपने-अपने प्रतिबन्ध हैं जो उनके विकासको व्यवस्थित बनाते हैं। अतः यह फैसला करना समितिके ऊपर है


१. गांधीजी विषय-समितिको बैठकमें मोतीलाल नेहरू द्वारा रखे गये निम्न प्रस्तावपर बोल रहे थे :

“निश्चय किया गया कि कांग्रेस संविधानकी धारा ७ में निम्नलिखित संशोधन किया जाये : उपधारा ४ के स्थानपर निम्नलिखित कर दिया जाये : 'कोई व्यक्ति जिसने इसके उप-खण्ड (१) का पालन नहीं किया है और जो नियमित हाथकता और हाथबुना खद्दर नहीं पहनता उसे प्रतिनिधियों के चुनावमें, या किसी समिति या उप-समितिके चुनावमें अथवा किसी भी कांग्रेस संगठनके चुनावमें मतदानका अधिकार नहीं होगा और उसे कांग्रेस था कांग्रेस संगठन या कांग्रेसकी किसी समिति या उप-समितिमें भाग लेनेका अधिकार भी नहीं होगा।"

२. महादेव देसाईके “ साप्ताहिक पत्र " में यह इस प्रकार दिया गया है: “मैं कह दूँ कि सदस्यताके लिए सूत देनेकी शर्तको फिर लागू कर दिये जानेपर ही मेरी न्याय-भावनाको सन्तुष्टि होगी। यदि कताईंको शर्त राष्ट्रीय विकासके लिए जरूरी है, मैं समझता हूँ कि वह निश्चित रूपसे जरूरी है, तो वथा उसके लिए मेरा यह शर्त रखना ठीक नहीं है ? यदि कोई सदस्य मुझपर यह आरोप लगाये कि मेरा मंशा किसी दलको कांग्रेससे बाहर रखनेका है तो मैं इससे अपनेको भले ही अपमानित न महसूस करूँ, पर मुझे इससे गहरा दुःख जरूर होगा। "