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२०५. भाषण : चित्तरंजन सेवासदन, कलकत्तामें'

[२ जनवरी, १९२७ ]
 

आधार-शिला रखनेको विधि संपन्न होनेकी घोषणा करते हुए गांधीजीने डॉ० नीलरतन सरकारके इस कथनका जोरदार शब्दोंमें समर्थन किया कि देशबन्धु और स्वयं उनके बीच आध्यात्मिक एकता थी। उन्होंने कहा कि देशबन्धुकी मृत्युसे यह एकता सम्भवतः और भी वास्तविक बन गई है। उन्होंने कहा, मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि गुलाम भारतकी विशिष्ट राजनीतिक स्थिति के कारण अन्य राजनीतिक नेताओंकी ही भाँति यदि देशबन्धुको भी अपनी शक्तियाँ राजनीतिमें न लगानी पड़ी होतीं तो उन्होंने पूरी तरहसे धार्मिक सुधार और दरिद्रनारायणकी सेवामें ही अपनेको लगा दिया होता। लेकिन देशबन्धुका विश्वास 'गीता' की इस शिक्षापर अमल करनेमें था कि अन्य कर्त्तव्य भले ही श्रेष्ठ प्रतीत हों, लेकिन जो कर्त्तव्य तात्कालिक हो, पहले उसोको पूरा करो। भले आज ऐसा लगे कि में एक साधारण मातृगृहकी आधार-शिला रख रहा हूँ, लेकिन देशबन्धुके दृष्टिकोणसे यह कार्य स्वराज्यकी दिशामें एक और कदम है। इसके बाद उन्होंने कुछ क्षेत्रों में व्यक्त की गई इस शंकाकी चर्चा को कि चूँकि बंगालो लोगोंमें संकीर्ण प्रान्तीयताको भावना होती है इसलिए इस स्मारक संस्थामें भी वही भावना आ जायेगी ।

यदि बंगाली लोग समूचे भारतको बंगालमें आत्मसात् कर लें तो मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि तब यू० पी० के बूढ़े पंडित और गुजरातके मुझ बूढ़े बनिये, दोनोंको आराम करने के लिए कुछ समय मिल जायेगा। मुझे इसमें तनिक भी आपत्ति नहीं होगी कि वह बंगाल जिसने रवीन्द्रनाथ ठाकुर, राममोहन राय, केशवचन्द्र सेन, रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्दको जन्म दिया है, वह बंगाल जिसकी धरती चैतन्यके पवित्र चरण-स्पर्शसे धन्य हुई है, वह बंगाल जिसकी धरती गंगा और ब्रह्मपुत्रके पवित्र जलसे पावन हुई है, समूचे भारतको अपने में आत्मसात् कर ले। लेकिन उपर्युक्त भय निराधार है; क्योंकि डा० विधानचन्द्र रायने न्यासियोंकी ओरसे घोषणा की है कि यह सेवासदन उसी उदार भावनाके साथ चलाया जायेगा जिस भावनाके साथ देशबन्धुने मातृभूमिकी सेवा की। यह संस्था उस व्यक्तिके प्रति एक सजीव श्रद्धांजलि स्वरूप है जिसकी उत्कट इच्छा हमारी उन दलित बहनोंका उद्धार करनेकी थी, जो हमारी काम-वासनाकी शिकार । यह संस्था किसी अमुक न्यासीकी नहीं है, यह सारे देश-

१. महादेव देसाईके “साप्ताहिक-पत्र" से उद्धृत

२. तिथिका निर्धारण फॉरवर्ड में प्रकाशित रिपोर्ट से किया गया है।

३. ५० मदनमोहन मालवीय ।

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