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'२०४. भाषण : दलितवर्गकी पाठशालाओंके छात्रोंकी सभा'

२ जनवरी, १९२७
 

उत्तर देते हुए महात्माजीने कहा कि मैं नहीं जानता था कि दलितवर्गीके सदस्य मुझे कोई अभिनन्दनपत्र भी देंगे। मैं आपके कष्टों और आपके अनन्त दुःखोंको समझता हूँ और कभी-कभी मेरा मन होता है कि मैं भी अछूत बन जाऊँ ताकि मैं इस देशमें आपकी स्थितिको स्पष्ट रूपसे अनुभव कर सकूँ। मुझे इस बातका दुःख है कि हिन्दू समाजके लोग आप लोगोंकी कोई मदद नहीं कर रहे हैं, उलटे, मजदूरीके रूपमें आपसे सेवा कराते हैं। यदि हिन्दू समाजमें यही भावना बनी रही तो यह देश गारत हो जायेगा। स्वामी श्रद्धानन्दजीका, जिन्होंने देशसे अस्पृश्यताका निवारण करनेमें अपनी अमूल्य जान गँवा दी, कथन था कि जब मैं देखूंगा कि हिन्दू लोग अपने घरोंमें कमसे-कम एक-एक दलितवर्गका बालक रख रहे हैं तभी मैं समझँगा कि हिन्दु- ओंको देशके अस्पृश्योंका खयाल है। किन्तु इससे भी पहले स्वामीजी यह चाहते थे कि दलितवर्गके लोग शराब, जुआ और अन्य बुरी लतें छोड़ दें, जिनके कारण वे देशकी अन्य जातियोंसे हमेशा पिछड़े रहते हैं।

महात्माजीने आगे बोलते हुए कहा कि पण्डित मदनमोहन मालवीयने स्वामी श्रद्धानन्दके शुद्धि और संगठन आन्दोलनको जारी रखनेके लिए ५ लाख रुपया इकट्ठा करनेकी अपील निकाली है। मालवीयजी दलितवर्गोंसे किसी घनकी अपेक्षा नहीं करते, क्योंकि वे जानते हैं कि हिन्दू समाजके लोग अपनी भलाईके खयालसे उनकी इच्छा पूरी कर देंगे; तथापि आप लोगोंको चाहिए कि स्वामी श्रद्धानन्दकी पुण्यस्मृतिके प्रति श्रद्धाके प्रतीक स्वरूप आप लोग आपसमें कुछ धन जमा करें और वह थैली मालवीयजीको भेंट करें।

[ अंग्रेजीसे ]

अमृतबाजार पत्रिका, ४-१-१९२७



१. गांधीजी कलकत्ता और हावड़ा स्थित दलितवर्गोंकी १६ पाठशालाओंकी ओरसे दिये गये अभिनन्दनपत्रका उत्तर दे रहे थे। यह सभा कलकत्ताके मिर्जापुर पार्क में हुई थी।