अन्त में महात्माजीने नौजवानोंसे अपील करते हुए कहा कि यदि वे स्वदेशकी सेवा करना चाहते हैं तो उन्हें ऐसे महापुरुषोंसे मिलना-जुलना चाहिए और उनके चरण-चिह्नोंका अनुसरण करना चाहिए। ऐसे महापुरुषोंका सच्चा स्मारक उनके चरण-चिह्नोंका अनुसरण करना ही होगा ।
[ अंग्रेजीसे ]
अमृतबाजार पत्रिका, ४-१-१९२७
२०७. भाषण : खादी प्रतिष्ठान, सोदपुरमें
आप देखेंगे कि उन्होंने खादीके लिए अपना सब-कुछ दाँवपर लगा दिया है। आपमें से बहुतसे लोग सोचेंगे कि वह पागल हो गये हैं। लेकिन मैं आपको बताता हूँ कि विश्वासके बलसे पर्वत डिग जाता है, और सतीशबाबूको खादीमें विश्वास है। साथ ही उनका यह संकल्प है कि जो लाखों रुपयोंका विदेशी कपड़ा कलकत्ते के बाजारों में आता है, उसे जहाँतक बन पड़े आनेसे रोकें ।
गांधीजीको चन्देको अपीलपर ५०० रु० तत्काल जमा हो गये और करीब ३००० रुपये देनेके वचन मिले।
[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १३-१-१९२७
२०८. पत्र : गंगाबहन वैद्यको
चि० गंगाबहन,
मैं देखता हूँ कि तुम्हारे लिखने में लिगकी भूलें होती हैं। कच्छी [भाषा ] में स्त्रीलिंग और पुलिंग ही हैं, किन्तु गुजरातीमें नपुंसक लिग भी है। कच्छीमें तुम “घर केवो " कहती हो; गुजरातीमें "घर केवुं" कहते हैं। तुम 'तमारो शरीर" कहती हो जब कि गुजरातीमें "तमारुं शरीर" कहा जाता है। इस तरह दो भाषाओंकी तुलना
१. गांधीजी खादी प्रतिष्ठानकी कलाशालाका उद्घाटन कर रहे थे, जिसकी स्थापना सतीशचन्द्र दासगुप्तने कलकत्तेके निकट सोदपुरमें की थी। यह रिपोर्ट महादेव देसाईके “साप्ताहिक पत्र " में से ली गई है।
२. तारीखका निर्धारण हिन्दू में प्रकाशित रिपोर्ट से किया गया है। ३. सतीशचन्द्र दासगुप्त ।
४. यह पत्र गंगावनके २ जनवरी, १९२७ के पत्रके उत्तरमें लिखा गया था।