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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस आदर्शके अनुकूल हवा पैदा करनेका यत्न करना चाहिए या नहीं ? निरन्तर करना चाहिए ।

किस प्रकारका यत्न इसके लिए उपयोगी होगा ? ऐसे प्रयत्न करनेवाले व्यक्तियों की संख्या बढ़ती रहे। और ऐसे प्रयत्नशील व्यक्तियों की संख्या बढ़ानेका एक ही रास्ता है और हमेशा रहा है। वह यह कि जिनका ऐसे आदर्शपर विश्वास है वह कितनी ही कठिनाइयाँ होते हुए भी अपने आदर्शको न छोड़ें ।

अर्थात् व्यक्तियोंको लेख और व्याख्यान द्वारा इस आदर्शका प्रचार करना चाहिए ?

व्यक्तियोंको अपने आचार द्वारा प्रचार करना चाहिए। व्याख्यान और लेख द्वारा कुछ नहीं होता, यदि उदाहरण न हो । यदि उदाहरण हो तो लेख और व्याख्यानसे भी सहायता मिलती है। आचारमें व्याख्यान, लेख आदि भी आ जाते हैं। यह मैंने माना कि बिना स्वयं आचरण किये, वक्ताके उपदेशमें प्रभाव नहीं होता। पर जैसे आपने स्वयं खद्दर धारण आरम्भ किया, चरखा चलाना आरम्भ किया, पर साथ-साथ इनका उपदेश भी बहुत विस्तारसे और निरन्तर परिश्रमसे आप करते आये हैं, तभी इन भावोंका प्रचार देशमें बढ़ता जा रहा है, और इसी प्रकार ही आप असहयोग सम्बन्धी कई विषयोंका आचरणके साथ उपदेश भी बराबर करते रहते हैं, वैसे ही क्या इस विषय में भी जनताको निरन्तर आप उपदेश देनेको आवश्यकता नहीं समझते कि, 'हे भाइयो, जहाँ-जहाँ प्रतिनिधि चुनना हो वहाँ-वहाँ ऐसी ही योग्यताके स्त्री- पुरुषों को चुनो।' क्या बिना ऐसे उपदेशके जनता इस परम महत्त्वके विषय में अन्धकारमें न पड़ी रहेगी?


यह प्रश्न ठीक है, परन्तु वस्तुतः इसका उत्तर मेरे पिछले उत्तरमें आ गया है क्योंकि उपदेशको मैं आचारका अंग समझता हूँ। उपदेशको मैं पृथक् स्थान नहीं देता हूँ, क्योंकि जिसका आचार नहीं, उसका उपदेश निरर्थक है, और कई बार हानि- कारक हो जाता है। और जो अपने आचारको शुद्ध रखता है वह अवसर पानेपर उपदेश देता ही रहता है ।

पर जहाँतक मुझको याद पड़ता है आपने अपने लेखों और व्याख्यानोंमें भारत- वर्षको जनताको यह उपदेश नहीं किया कि किस-किस योग्यताके प्रतिनिधि तुमको चुनने चाहिए ?

मैंने एक नहीं अनेक बार यह उपदेश लेख और व्याख्यान द्वारा किया है।

'यंग इंडिया' में इस विषयके लेख मिलेंगे ?

हाँ ।

मैं खोजूंगा । बीचके स्वराज्यमें, जिसमें प्रतिनिधियोंका स्थान है, उसमें योग्य प्रतिनिधि प्राप्त करनेके लिए क्या उपाय करना चाहिए, क्या मर्यादा बाँधनी चाहिए ? किन लक्षणोंसे योग्य प्रतिनिधि पहचाने जायें ? जहाँतक मुझे देखने में आया, पश्चिमके