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भेंट : डॉ० भगवानदाससे

नहीं रहती। कोई सरकारी कर्मचारी नहीं रहते। सब आदमी एक दूसरेके सेवक होते हैं। इस आदर्श स्वराज्यको मनमें रखनेसे भूल न करेंगे या कम करेंगे। यह निश्चय है कि ऐसा आदर्श स्वराज्य मिलेगा नहीं पर इसके निकटतम हम पहुँच सकेंगे ।

यह तो पराकाष्ठाका स्वराज्य हुआ जैसा स्यात् 'महाभारत' में वर्णित उत्तर कुरुओंका था जो सब योगसिद्ध, देवप्राय और जीवनमुक्त थे । पर हम लोगोंकी अवस्थाको दृष्टिसे अहमदाबादमें आपने कहा था कि देशको औपनिवेशिक स्वराज्यतक में पहुँचा सकता हूँ। यह हमारे लिए तत्काल उपयोगी, बीचका स्वराज्य हुआ ?

हाँ ।

ऐसे मध्यकाष्ठाके स्वराज्यमें व्यवस्थापिका (लेजिस्लेटिव) सभाएँ अवश्य होंगी? हाँ ।

उनके लिए प्रतिनिधि चुनना होगा ?

हाँ ।

वे प्रतिनिधि जहाँतक मिल सकें अधिकतम ज्ञानी, अनुभवी, निःस्वार्थ और लोकहितैषी होने चाहिए ?

हाँ ।

निर्वाचकों (इलेक्टर्स) को यह आदर्श सदा अपनी आँखके सामने रखना चाहिए ?

हाँ ।

तत्काल डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, म्युनिसिपल बोर्ड आदि तथा जितनी कांग्रेस कमेटियाँ चुनी जाती हैं उनमें भी इसी आदर्शसे काम लेना चाहिए । अवश्य ।

यह आदर्श जनतामें फैला है या नहीं ?

कुछ-कुछ ।

कांग्रेस कमेटियों, लोकल बोर्डो आदिके लिए जो चुनाव होते हैं उनके देखनसे क्या अनुमान करना चाहिए कि यह आदर्श कहाँतक फैला है और उससे कहाँतक काम लिया जाता है ? बहुत कम फैला है या पर्याप्त मात्रामें ?

जितना चाहिए उससे कम है।

व्यवस्थापिका सभाओंमें यही आदर्श बरतना चाहिए ?

आजकल जो भी चुनाव होते हैं उन सबमें यही आदर्श बरतना चाहिए ।

इस आदर्शको फैलाने के लिए पर्याप्त प्रयत्न किया गया है या नहीं? नेताओंकी ओरसे या कांग्रेसकी ओरसे ?

इसके उत्तरमें 'हाँ' या 'नहीं' कह देना पर्याप् न होगा। मेरा विश्वास है। कि इसके लिए अनुकूल हवा नहीं है।

आपने पहले कहा कि कुछ-कुछ फैला है। तो जो कुछ हुआ वह अबतक प्रयत्न व्यक्तिगत हुआ। जब अनुकूल हवा फैलती है तब अनायास सभी ऐसे आदर्शके वश बरतते हैं ।