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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मयं

उपयोगी ज्ञानका भी, विशेष रूपसे कांग्रेसकी ओरसे और नेताओंकी ओरसे, उपदेश किया जाये। क्या यह विचार अनुचित था' ?

यदि इसका अर्थ यह है कि लोगोंके सामने कोई योजना रखी जाये तो मैं इस रायपर आया हूँ कि ऐसी योजनासे ऐसा कोई फायदा नहीं होगा। परन्तु लोगोंको इस बारेमें ज्ञान देना, उनको जागृत करना, जिससे वे योग्य प्रतिनिधिको ही चुननेके लिए शक्तिशाली बन जायें, यह उचित है । प्रतिनिधियोंकी क्या-क्या योग्यता हो- -- उमर कितनी हो आदि - उसे मैं अभीसे बाँधना पसन्द नहीं करता। यह सब चुननेवालोंकी ही समझपर छोड़ना चाहिए ।

चरखके विषयमें, रुईके पैदा करने, संग्रह करने आदिके विषयमें, सूत कातने, कपड़ा बुनने-बेचने आदिके विषयमें बहुत तफसीलसे स्वयं अथवा सहायकों द्वारा आप जनताको निरन्तर उपदेश देते रहते हैं, वैसा क्या इस गम्भीर विषयमें कि योग्य प्रतिनिधि किन लक्षणोंसे पहिचाने जायें, आप जनताको कुछ थोड़ा भी दिग्दर्शन करना- कराना आवश्यक नहीं समझते ? जो स्वयंसिद्ध बात है, जैसे दो और दो मिलके चार होते हैं, वह भी बच्चोंको बहुत परिश्रमसे सिखानी पड़ती है। खाली समयमें चरखा कातो यह भी प्रायः स्वतःप्रमाण बात है, पर यह भी आपके इतने परिश्रमपर भी लोकमें जैसी चाहिए वैसी नहीं फैली, फिर प्रतिनिधिकी योग्यताका निर्णय बिना किसी भी विशेष उपदेशके आप निर्वाचकोंकी समझपर कैसे छोड़ देना चाहते हैं? यदि उमरके विषय में आप किसी मर्यादाकी सूचना देना अभी उचित नहीं समझते तो अन्य किसी योग्यताके बारेमें तो कुछ सूचना दीजिए ?

इस बारेमें में कुछ लिख चुका हूँ और समय पानेसे यथायोग्य लिखता हूँ । पर सभामें इसके उपदेशकी आवश्यकता नहीं रहती। लोग जब प्रतिनिधि चुनने की अवस्थाको पहुँचेंगे तब उनको इस बारेमें अवश्य उपदेश देना होगा, जिस तरह चरखे का दिया जाता है। प्रत्येक वस्तुका समय होता है ।

अब दूसरे विषयपर प्रश्न करता हूँ। मजहबवालोंकी एकता क्या बिना उनको यह समझाये कि तुम सभी लोगोंके धर्मोका मुख्य तत्व एक ही है, हो सकती है ? अर्थात् मजहबोंका असली एका बिना साबित किये, क्या मजहबवालोंका एका हो सकता है ?

नहीं ।

जब भिन्न धर्मवालोंको समझाया जाये कि सब धर्मोका हृदय एक ही है तब ही तो धर्मवालोंमें एका होगा ?

हाँ ।

इसके लिए क्या प्रयत्न होना चाहिए ?

सब धर्मके जो अच्छे और सच्चे धर्माचारी लोग हैं उनको इस बातका प्रचार करना चाहिए ।