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२३७. पत्र : गोरक्षा समिति, मैसूरको'

[ पत्रोत्तरका पता :]
 
आश्रम, साबरमती
 
११ जनवरी, १९२७
 

प्रिय मित्र,

आपके २७ नवम्बर, १९२६ के पत्रका जवाब देने में बहुत विलम्ब हुआ है, इसके लिए मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ। मुझे आपका पहला पत्र यथा-समय मिल गया था । मेरे खयालसे वह बिलकुल औपचारिक था, और चूंकि मेरे पास कुछ खास कहनेको नहीं था इसलिए मैंने आपको उत्तर नहीं दिया। आपके दूसरे पत्रसे मुझे लगा कि आप मेरी राय प्राप्त करने को उत्सुक हैं। लेकिन उस समय में काममें इतना व्यस्त था कि ठीक विचार करके कुछ लिख भेजनेका अवकाश ही नहीं था । यह जवाब भी में बिहार-यात्राके दौरान दे रहा हूँ। मुझे आशा है कि आप इन तथ्योंको मेरे उत्तरमें विलम्बका पर्याप्त कारण मान लेंगे । शायद अब कोई जरूरत भी न हो, तथापि मैं अपने मनको सन्तोष देने के लिए आपसे कहना चाहता हूँ कि पहले उत्तर न देने में आपके प्रति मंशा असौजन्य दिखानेका नहीं था और अब जब कि मुमकिन है मेरा उत्तर वक्त निकल चुकनेके बाद पहुँचेगा, वैसा कोई भाव नहीं है ।

मैं धर्मके मामले में राज्य द्वारा किसी प्रकारके हस्तक्षेपके विरुद्ध हूँ, और भारतमें गायका सवाल धर्म और अर्थका मिलाजुला सवाल है । जहाँतक आर्थिक प्रश्नका सम्बन्ध है, मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है कि मवेशियोंकी रक्षा करना हर राज्यका कर्तव्य है, चाहे वह हिन्दू राज्य हो या मुसलमान राज्य । किन्तु यदि में आपकी प्रश्नावलीको ठीक समझा हूँ तो उसका मन्शा यह जाननेका है कि गोवधका नियमन करनेके लिए, उन मामलोंमें भी जिन्हें मुसलमान धार्मिक मानते हैं, क्या राज्यका हिन्दू और मुसलमानोंके बीच हस्तक्षेप करना उचित होगा अथवा नहीं। मैं भारतको जितना यहाँ जन्म लेनेवाले हिन्दुओंका देश मानता हूँ उतना ही वह यहाँ जन्म लेनेवाले मुसलमानों, ईसाइयों और अन्य लोगोंका देश भी है। और भारतके किसी हिन्दू राज्यमें भी यदि वहाँकी कोई प्रजा धार्मिक उद्देश्यसे गोवध करना चाहे तो बिना ऐसी प्रजाके प्रबुद्ध बहुमतकी मर्जीके उसका निषेध नहीं होना चाहिए, बशर्ते कि गोवध खानगी तौरपर किया जाये और हिन्दुओंको उत्तेजित करने या चोट पहुँचानेका कोई मन्शा उसमें न हो। यह अवश्यम्भावी है कि इस प्रकारके गोवधकी जानकारी-मात्रसे हिन्दुओंको ठेस पहुँचेगी। लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि हम जानते हैं कि भारतमें गोवध अकसर हिन्दुओंकी भावनाओंको चोट पहुँचाने के उद्देश्यसे ही किया जाता है। जिस राज्य- को अपने विभिन्न समाजोंकी भावनाओंका तनिक भी खयाल है, उसे ऐसी हरकतोंको सख्ती से रोकना चाहिए। लेकिन मेरी रायमें गायके सवालका जो आर्थिक पहलू है उसे समुचित तौरपर सम्हाला जाये तो धर्मके नाजुक पहलूका हल वह अपने-आप