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२३५. पत्र : नानाभाई इच्छाराम मशरूवालाको

ट्रेनपर
 
सोमवार [१० जनवरी, १९२७]
 

भाईश्री नानाभाई,

तुम्हारा पत्र मिला । मुझे लगता है कि दास्ताने की माँग उचित है । इस बार मैं चन्दा उगाहनेके निमित्त यात्रा कर रहा हूँ, इसलिए मुख्य रूपसे वहाँ ही जाऊँगा जहाँ उसकी आशा हो; लेकिन मानता हूँ कि अकोला तो यात्रामें होगा ही । जहाँ तुम्हारे जैसे खादीभक्त हों वहाँ में न जाऊँ ऐसा हो ही नहीं सकता। पहले मैं तुम जैसा लिखते हो उसी भावसे यात्रा किया करता था । यह भेद यदि तुम्हें समझ न आया हो तो फिर पूछना । उम्मीद है, बहन गोमतीका बुखार उतर गया होगा और किशोरलाल अबतक चले गये होंगे ।

बापूके आशीर्वाद
 

श्रीयुत नानाभाई इच्छाराम मशरूवाला

अकोला जिला

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४३१९ ) की फोटो - नकलसे ।

सौजन्य : कनुभाई मशरूवाला

२३६. पत्र : गंगाबहन वैद्यको

[१० जनवरी, १९२७ के पश्चात् ]
 

चि० गंगाबहन,

भूलें होने से घबराने की कोई जरूरत नहीं । प्रयत्न करनेसे वे खुद-ब-खुद दूर हो जायेंगी ।

जिसका मन निरन्तर परोपकार में रत रहता है वह आसानीसे आत्मिक उन्नति प्राप्त करता है । तुम तो परोपकार करती ही रहती हो, इसलिए सब कुशल ही है ।

बापूके आशीर्वाद
 

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ८७०४ ) से ।

सौजन्य : गंगाबहन वैद्य

१. डाककी मुहरपर १३ जनवरी, १९२७ तारीख है। सोमवार १० तारीखको पड़ा था ।

२. किशोरलाल मशरूवालाको पत्नी ।

३. यह पत्र गंगाबद्दनके १० जनवरी, १९२७ के पत्रके उत्तरमें लिखा गया था।