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'२३९. पत्र: एक मित्रको'

[पत्रोत्तरका पता : ]
 
आश्रम, साबरमती
 
१२ जनवरी, १९२७
 

प्रिय मित्र,

आपके पत्रपर 'यंग इंडिया' में चर्चा करनेका मेरा विचार नहीं है, क्योंकि मेरा खयाल है आम पाठकोंके सामने वैसी कोई कठिनाई नहीं है जैसी आपके सामने आई है। यह जानते हुए भी कि मैं हजारों सूक्ष्म कीटाणुओंको मार डालता हूँ, यदि म इस प्रकारकी हत्याकी आवश्यकतासे मुक्त होनेकी बराबर कामना रखता हूँ और ऐसी हत्या से बचनेकी यथा सम्भव पूरी कोशिश भी करता हूँ, तो वैसी स्थिति में मैं कह सकता हूँ कि मैं अहिंसामें विश्वास रखता हूँ। और जन्म-मरणके बन्धनसे छुटकारा पानेकी मेरी उत्कट इच्छा भी इसीलिए है। मेरे वर्तमान जीवनको जीनेसे इनकार कर देनेसे कष्टोंका अन्त नहीं हो जाता। लेकिन मौजूदा शरीरके नाशके बाद दूसरा शरीर प्राप्त करनेसे मेरा इनकार करना एक ऐसी सम्भावना है जो उपलब्ध की जा सकती है।

हृदयसे आपका,
 

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२८०५) की फोटो-नकलसे ।

२४०. भाषण : धनबादमें

१२ जनवरी, १९२७
 

महात्माजीने कहा कि बाबू राजेन्द्र प्रसादसे इस खराब मौसमके सम्बन्ध में पूछने- पर मुझे मालूम हुआ कि इस प्रान्तमें जाड़ोंमें भी बारिश होना कोई असाधारण बात नहीं है और कुछ हदतक बारिश होना जरूरी भी है। निःसन्देह मुझे मालूम है कि बारिशकी वजहसे श्रोताओंको कितनी कठिनाई उठानी पड़ी है; और मुझे भी कुछ कम कठिनाइयाँ नहीं हुई हैं। लेकिन मैं सभी तरहकी कठिनाइयोंके बीच काम कर सकता हूँ। मेरा जीवन हर तरहकी कठिनाइयोंसे संघर्षकी एक लम्बी कहानी रहा है।

पहले महात्माजीने घोषणा की कि अगले दिन शामको एक सभा होगी, जिसमें में भाषण दूंगा। इसके बाद उन्होंने अपने दौरेका उद्देश्य समझाया। उन्होंने कहा कि

१. मित्रका नाम मालूम नहीं।

२. सभा स्थानीय हॉलमें हुई थी।