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भाषण : धनबादमें

आप शायद जानते हैं कि मेरे इस दौरेका उद्देश्य विशेष रूपसे चरखे और खादीका सन्देश देना है। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि स्वराज्य पानेकी दृष्टिसे देशमें अन्य काम करनेकी काफी गुंजाइश है, लेकिन मैंने जो चरखेका काम हाथम लिया है सो इसलिए कि मैंने देखा कि यह काम समान जोरके साथ हिन्दू-मुसलमान, स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध, स्पृश्य-अस्पृश्य सभी लोगोंसे करनेको कहा जा सकता है। चरखा एक सार्वत्रिक चीज है और इसलिए हर व्यक्तिको अपनी सामर्थ्यके अनुसार इससे कताई- का काम करना चाहिए । चरखा कातना हर भारतीयका पवित्र कर्तव्य है; इस सार्वत्रिक यज्ञमें हर व्यक्तिसे शामिल होनेकी अपेक्षा की जाती है। लेकिन यदि सब लोग ऐसा नहीं कर सकते, तो एक काम तो अवश्य कर सकते हैं। कमसे-कम खद्दर तो सभी पहन सकते हैं।

आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि समस्त भारतमें सर्वत्र खद्दरके कामको बड़े पैमानेपर चलानेके लिए उसपर बहुत पूँजी सर्च करने की जरूरत है। वह पूँजी देशको ही जुटानी है। करीब १६ लाख रुपये पहले ही इकट्ठा हो चुके हैं और खर्च भी किये जा चुके हैं; और इसके फलस्वरूप लगभग ५० हजार ऐसी औरतों और लगभग ४००० आदमियोंको रोजी मिलती है जिनके पास पहले लगभग कुछ काम करनेको नहीं था। बुनकरोंको, जिनमेंसे बहुतोंको लंकाशायरके बुनकरों से जबर्दस्त मुकाबला पड़नेके कारण अपना पेशा छोड़ देना पड़ा था, फिरसे रोजी मिल गई है। धुनियों और रुई पींजनेवालोंमें काफी धन पहले ही वितरित हो चुका है। इसलिए कताईका काम गरीबोंकी रक्षा करनेवाला है जबकि मध्यवर्गके लोग भी उससे काफी लाभ उठा सकते हैं। मध्यवर्गके नौजवान सरकारसे याचना और अमीरोंकी मिन्नत किये बिना अपनी बेरोजगारीकी समस्या स्वयं ही बहुत कुछ सुलझा सकते हैं। निश्चय ही इस कामसे बहुत आर्थिक लाभकी आशा नहीं की जा सकती, लेकिन नौजवान लोग खद्दर का काम फिरसे अपनाकर ईमानदारीसे जीविकोपार्जन भली- भाँति कर सकते हैं ।

भाषण जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि जिस कोषके लिए मैं धन देनकी अपील कर रहा हूँ उसका नाम देशबन्धु-स्मारक-कोष है जो स्वर्गीय देशबन्धुको पवित्र स्मृतिको चिरस्थायी बनाने के लिए शुरू किया गया है। खद्दर उनको दिलसे बहुत प्यारा था। उन्होंने इस बातको समझ लिया था कि चरखा ही एक ऐसी चीज है जिसके जरिये सर्वसाधारणको गाँवोंके पुननिर्माण कार्यमें लगाया जा सकता है। गाँवोंका पुननिर्माण उनके जीवनका स्वप्न था, जिसे वे अपने जीवनमें मूर्त नहीं कर सके। मृत्युसे कुछ दिन पूर्व उन्होंने खद्दर-सम्बन्धी दौरेमें मेरे साथ चलने की अपनी इच्छा व्यक्त की थी। लेकिन मेरे मन कछु और है, विधनाके कछु और। अपनी योजनाके अनु- सार कुछ काम शुरू कर सकनेसे पहले ही मृत्युके क्रूर हाथोंने उन्हें छीन लिया । महात्माजीने कहा कि उनकी अन्तिम इच्छा पूरी करनेके लिए ही यह अखिल-भार-