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लड़कियोंकी पाठशालाएँ ९ हैं और लड़कोंकी २६ हैं। उनमें ४५४ लड़कियां हैं और ३६३ लड़के हैं। सूत कातनेवाली लड़कियाँ ७० हैं और लड़के ६०। लड़कोंकी शालाओंमें १५ और लड़कियोंकी पाठशालाओं में १७ चरखे दिये गये। सालभरमें लड़कोंने २४,००० गज सूत काता और लड़कियोंने २६,००० गज। लड़कोंके सूतका वजन ११८ तोला है और लड़कियोंके सूतका १३० तोले। नगरपालिकाने ४६ रु० ८ आ० की लागतसे ३ मन पूनियाँ खरीदी थीं। सूत नगरपालिकाके दफ्तर में है। लगभग १०० छात्र खादी पहनते हैं। अध्यापकों की कुल संख्या ८७ हैं जिनमें ३० स्त्रियाँ हैं और ५७ पुरुष। लगभग सभी खादी पहनते हैं। इनमें से ६३ अध्यापक अपना सूत अखिल भारतीय चरखा संघको दे देते हैं और एक अध्यापक सूतके रूपमें चन्दा देने- वाले कांग्रेसके सदस्य हैं।

कुल ५०० रुपयेकी खादी खरीदी गई।

इस समय १० शालाओं में सूत कातना सिखाया जाता है। १० शालाओंमें हिन्दी सिखाई जाती थी, किन्तु वह नगरपालिका द्वारा उसके विरोध में पास किये गये एक प्रस्तावके कारण बन्द कर दी गई।

पंचम वर्णके लड़कों और गरीब लड़कों को खादी मुफ्त बाँटी जा रही है। सवर्ण अध्यापक पंचमोंकी शालाओंमें और पंचम अध्यापक सवर्णोंकी शालाओंमें पढ़ा रहे हैं।

राष्ट्रीय वीरोंके जन्मदिनों और पुण्यतिथियोंपर छुट्टियाँ रखी जाती हैं।

सभी अध्यापक सूत कात सकते हैं। उनका सूत नगरपालिका के दफ्तर में है। हर अध्यापकको एक-एक चरखा दिया गया है। अध्यापकगण लगभग २ मन पूनियाँ काममें लाते हैं।

नगरपालिकामें अन्य कर्मचारियोंकी संख्या १०० है। वे लगभग सभी खावी पहनते हैं।

युद्धकालमें सूत कताई

मोम्बासासे एक सज्जनने एक पत्रमें जनरल वॉन केटो वोर्बेककी पुस्तक, 'माई रेमिनिसेन्सेज ऑफ ईस्ट आफ्रिका', में से निम्न उद्धरण भेजे हैं। इनमें बताया गया है कि कठिन परिस्थितियोंके दबाव में भी सूत कातना किस प्रकार सम्भव है:

टांगामें लूटका बहुत माल हमारे हाथ लगा था। किन्तु फिर भी लड़ाई लम्बी होनेकी सम्भावना जान पड़ती थी, इसलिए यह स्पष्ट दिख रहा था कि हमारे पासका भण्डार चुक जायेगा। न्यू मौशीके वतनी एकाएक रेशम पहनने लग गये थे। किन्तु यह उनके फिजूल खर्च हो जानेका लक्षण तो कदापि न था। भारतीयों की दुकानों में सूती कपड़ेका जखीरा खत्म हो रहा था। हमें स्वयं संजीदगी से माल तैयार करनेका विचार करना पड़ा। हमारे पास जो