पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/६२

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१७. पत्र : डॉ० के० के० कुरुविल्लाको

साबरमती
११ नवम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। डा० फरेटके साथ पत्र-व्यवहारकी मुझे खूब याद है। मेरी रायमें उनका रास्ता स्पष्ट है। नोटिसके बावजूद उन्हें धरना तो देते ही रहना चाहिए। यदि जनमत उनके साथ है तो वह धरना जारी रख सकेंगे। यदि जनमत उनके साथ नहीं है तो उन्हें जेल जाना पड़ेगा। और उनके कैद होनेसे अन्ततोगत्वा सफलता मिलेगी। लेकिन ऐसा कदम उठानेसे पहले उन्हें जनमत तैयार करना चाहिए और यह बात सरकारके सामने साफ कर देनी चाहिए कि उनका इरादा हिसापूर्ण धरना देनेका नहीं है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

डॉ० के० के० कुरुविल्ला

मार्टहाउस सेमिनरी

कोट्टायम्

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १९७३२) की माइक्रोफिल्मसे।

१८. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

१२ नवम्बर, १९२६

प्रिय सतीश बाबू,

आपसे इतनी दूरीपर बैठा हुआ भी मैं आपकी पीड़ाको महसूस करता हूँ, और इसलिए आपको लिखनेसे घबड़ाता हूँ। अपने क्षेत्रसे बाहर जाकर कुछ और करनेके लिए आपसे कहते हुए तो मुझे और भी संकोच होता है।

लेकिन इस समय मैं आपसे जो कुछ करनेको कह रहा हूँ, वह शायद एक मजेदार मन बहलाव ही रहे। किसी दिन यों ही बाग बाजारमें कैप्टेन पेटावलका प्रतिष्ठान देखने चले जाइए और लिखिए कि वहाँ क्या हो रहा है। क्या उसमें कोई सार है? वे बहुत ही अधिक आग्रह कर रहे हैं और चाहते हैं कि मैं उनके कामकी चर्चा करूँ।[१] मुझे न तो उनका काम ही जँच रहा है, न खुद वे ही। कहीं ऐसा

  1. देखिए “पत्र : जे० डब्ल्यू पेटावलको”, १२-११-१९२६।