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पत्र : सी० विजयराघवाचारीको

न हो कि में उनके प्रति ज्यादती कर रहा होऊँ; इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप मुझे सही स्थिति बतायें। आप जान चुके होंगे कि अब तो डा० राय[१] भी उनके साथ हैं।

आप निराशाके इस दलदलसे बाहर निकल आइए और प्रसन्नचित्त रहिए, भले ही हर बातका नतीजा उलटा ही निकलता दिखाई दे रहा हो। कीमतोंके बारेमें आपके सुझावोंको न मानते हुए मैंने कुछ मनमानी की है; वह तो आपने देख ही लिया होगा।

हेमप्रभा देवी कैसी चल रही हैं? उन्हें पखवाड़ेमें कमसे कम एक बार मुझे पत्र लिखना चाहिए। आपकी बस्तीमें मलेरिया थम गया है या नहीं?

क्या आप २३ को शामिल हो सकते हैं ?

सस्नेह,

आपका,
बापू

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० १५६३) की फोटो-नकलसे।

१९. पत्र : सी० विजयराघवाचारीको

[ १२ नवम्बर, १९२६][२]

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला, प्रसन्नता हुई। मेरे लिए यह स्वीकार करना सम्भव नहीं है कि मैं उत्तर भारतका पक्षपात करता हूँ और दक्षिणकी उपेक्षा। मैं नहीं समझता कि यदि मैं कांग्रेस अधिवेशनमें चला गया तो कांग्रेसकी कार्यवाही आदिमें कोई खास भाग ले भी सकूंगा या नहीं। इस विषय में मुझे सन्देह है। मैं तो यही चाहूँगा कि १९१५-१८ में मेरा जो रुख था, वही फिरसे अख्त्यार कर सकूं, अर्थात् में अपना कार्य अपने विशेष विषयोंतक ही सीमित रखूंगा। कारण कुछ भी हो, कौंसिलोंके प्रति मेरे दिलमें जरा भी दिलचस्पी नहीं है। जो कुछ चल रहा है, उसे देखकर दुख होता है।

आपका स्वास्थ्य कैसा है?

हृदयसे आपका,

सी० विजयराघवाचारी
आराम, सेलम

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७३०) की फोटो नकलसे।

  1. प्रफुल्लचन्द्र राय।
  2. १७ नवम्बर, १९२६ के विजयराघवाचारीके पत्र (एस० एन० १२०८३) के आधारपर ताराख निर्धारित की गई है।