पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/६५

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२२. पत्र : गिरिराज किशोरको

१२ नवम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आप चाहें तो आ सकते हैं। लेकिन में आपको फिरसे आगाह करता हूँ। हो सकता है कि मैं आपके रहनेके लिए अपने बरामदेके एक कोनेमें ही जगह दे सकूं। शायद यहाँ आपको कोई बौद्धिक काम बिलकुल ही न दिया जाये और सारा काम शरीरश्रमका ही हो जिसमें सफाईका काम, पानी ढोने आदिका काम तो होगा ही। आपको प्रतिदिन आठ घंटे कताई या ऐसे ही अन्य कामों में लगाया जा सकता है।

आपसे शायद खुद अपना खाना पकानेकी अपेक्षा की जाये। किसी भी तरह आपका खर्च १५ रु० महीनासे ऊपर नहीं होना चाहिए। कुछ लोग तो यहाँपर १० रु० से कममें काम चला लेते हैं।

यदि यह सब आपको आकर्षित करता है, तो आप यहाँ प्रसन्न रहेंगे, अन्यथा नहीं।

हृदयसे आपका,

गिरिराज किशोर
रोहतक

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७३४) की माइक्रोफिल्मसे।

२३. पत्र : मुरलीप्रसाद अम्बरथाको

१२ नवम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

खद्दरकी वकालत मँचेस्टरकी तबाहीके लिए नहीं, बल्कि जनताकी हालत बेहतर बनानेके लिए ही की जाती है।

मिलें केवल कुछ लाख लोगोंको काम दे सकती हैं। आंशिक रूपसे बेरोजगार रहनेवाले लाखों लोगोंके लिए कोई उद्योग-धंधा सुलभ करना जरूरी है। चरखा ही एकमात्र ऐसा उद्योग है। एक अत्यन्त महत्त्वके जरूरी उद्योगपर कीमतके सवालका असर नहीं पड़ने दिया जा सकता। इसलिए मँहगी खादी आर्थिक दृष्टिसे सस्ती खादीसे भी सस्ती है। एक सालके अन्दर सारे भारतको खद्दरके कपड़े पहनाये जा सकते हैं।