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२०. पत्र : एच० बी० तेजूमलको

[ १२ नवम्बर, १९२६ ][१]

प्रिय मित्र,

धर्मग्रन्थोंके उद्धरण देनेसे कुछ लाभ नहीं होगा। द्रौपदीकी प्रार्थना एक प्रसिद्ध दृष्टांत है। यदि किसी व्यक्तिको अपनी प्रार्थनामें विश्वास है, तो मेरे मनमें जरा भी सन्देह नहीं है कि उसकी प्रार्थना पहाड़ोंको भी हिला सकती है। विश्वास और प्रमाण दो विरोधी बातें हैं। इसलिए दृष्टान्तोंसे कुछ लाभ नहीं। केवल प्रार्थना ही करनी है, चाहे प्रार्थनाका उत्तर मिले या न मिले। प्रार्थना स्वार्थ सिद्धिके उद्देश्यसे कभी नहीं की जानी चाहिए।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एच० बी० तेजूमल

चिकित्सक

न्यू सक्खर (सिंध)

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७३१) की फोटो-नकलसे।

२१. पत्र : जे० डब्ल्यू० पेटावलको

साबरमती
१२ नवम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

अनवरत प्रयत्नके लिए में आपका आभारी हूँ। कृपया उसे जारी रखिए। किसी दिन में आपको और आपकी योजनाको ज्यादा अच्छी तरह समझ पाऊँगा। आपको कताई में काफी मदद मिल रही है। इसलिए मुझे धीरजके साथ आप अपनी गतिविधि पर गौर करनेका अवसर दें। किसी दिन मुझे आपके प्रतिष्ठानको स्वयं आकर देखना ही होगा।

हृदयसे आपका,

कैप्टेन पेटावल

पॉलीटेकनिक इन्स्टीट्यूट

बागबाजार, कलकत्ता

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७३३) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. साबरमती संग्रहालयमें एस० एन० रजिस्टरके आलेखानुसार यह तारीख तय की गई है।