पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/६७

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२५. पत्र : मूलचन्द अग्रवालको

कार्तिक शुक्ल ७, १९८३ [ १२ नवम्बर, १९२६]

भाई श्री मूलचन्दजी,

आपका पत्र मीला। संस्कारोंपर मेरी श्रद्धा है परन्तु संस्कारकी जातिमें देशकाल और स्थितिका परिवर्तन होनेसे परिवर्तन होता है। उपवीतादि संस्कारके लीये में तटस्थ हुं।

मैं वर्णाश्रममें मानता हूं परंतु आज दोनोंका लोप हो गया प्रतीत होता है। हम सब शुद्र बन गये हैं। पांच वर्ण तो कभी नहि थे।

कातनेकी क्रिया केवल यज्ञ है और सबके लीये है परंतु जो उस क्रिया आजीविकाके लीये करे वह वैश्य है। अध्यापक धंदेकी दृष्टिसे ब्राह्मण है यदि वह बगैर तनख्वाह धंदा करे।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल पत्र ( जी० एन० ७६४) की फोटो नकलसे।

२६. पत्र : बहरामजी खम्बाताको

शुक्रवार [ १२ नवम्बर, १९२६ ][१]

भाई श्री खम्बाता,

चि० देवदासने कहा है कि आप दोनों कुछेक मित्रों सहित यहाँ रहनेके लिए आना चाहते हैं परन्तु आपको कहने में संकोच होता है। संकोच करनेका कोई कारण नहीं है। जब भी आना हो निःसंकोच चले आइए। जगहकी तंगी तो है लेकिन आपकी व्यवस्था तो कहीं न कहीं कर दी जायेगी। आशा है कि आपकी तबीयत अच्छी होगी। श्री एडीकी पुस्तकके बारेमें जब आप आयेंगे तब बात करेंगे। मैंने उसपर कुछ विचार तो किया ही है।

बापूके आशीर्वाद

भाई बहरामजी खम्बाता

२७५ हार्नबी रोड

फोर्ट, बम्बई

गुजराती पत्र ( जी० एन० ६५८७) की फोटो नकलसे।

  1. डाककी मुहर में तारीख १३-११-१९२६ है; लेकिन शुक्रवार १२ नवम्बर को था।