पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/६८

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२७. पत्र : श्रीप्रकाशको

[ १३ नवम्बर, १९२६][१]

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। जिन कुत्तोंका आपने उल्लेख किया है, उन्हें में बेकारकी बला नहीं मानता; फिर भी जहाँतक उनका सवाल है, मैं चाहूँगा कि उनका जीवन भी जितना संकटमय है, उससे कम संकटमय बन सके। लेकिन अहमदाबाद-जैसे शहरमें ऐसे कुत्ते हैं जो समाजके लिए खतरनाक हैं, जिनकी कोई देखभाल नहीं की जाती और जो अवांछनीय हैं। यदि उनकी देखभाल नहीं की जा सकती या वे हमारी ही तरह नहीं रखे जा सकते, तो जीवित होते हुए भी मृतकों-जैसे बने रहने के बजाय बेहतर होगा कि उनको मार डाला जाये।

खद्दरके सवालपर आशा है कि 'यंग इंडिया' में चर्चा करूँगा।

हृदयसे आपका,

श्रीप्रकाश
सेवाश्रम (बनारस छावनी)

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७२९) की माइक्रोफिल्मसे।

२८. पत्र : वसुमती पण्डितको

शनिवार [१३ नवम्बर, १९२६][२]

चि० वसुमती,

तुम्हारे दोनों पत्र मिले हैं। तुम्हारी तबीयत अच्छी रहे तो मैं निश्चिन्त हूँ। यहाँ आने में देर-सवेर हो तो मैं सहन कर सकता हूँ लेकिन तबीयत खराब होनेकी बात सहन नहीं कर सकता। इन्द्रवदनके भाई विक्रमको तो तुम पहचानती ही होगी। वह आश्रममें रहना चाहता है। इसके बारेमें तुम्हारा क्या खयाल है?

देवदास एक दिन यहाँ रहकर पंचगनी गया।

बापूके आशीर्वाद

चि० वसुमती धीमतराम

मार्फत अम्बालाल मथुरादास

पलियड वेडा, डाकखाना डांगरवा

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४७२) तथा (एस० एन० ९२२०) से भी।

सौजन्य : वसुमती पण्डित

  1. एस० एन० रजिस्टरके आधारपर।
  2. डाककी मुहरसे।