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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

में ऐसा नहीं मानता कि पश्चिमका सब कुछ त्याज्य है। पश्चिमकी सभ्यताकी मैंने कड़े शब्दोंमें निन्दा की है। मेरा मन अभी भी उसकी भर्त्सना करता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि पश्चिमका सब कुछ त्याज्य है। पश्चिमसे मैंने बहुत-कुछ सीखा है और में उसका ऋणी हूँ। पश्चिमके रहन-सहन और उसके साहित्यने मेरे ऊपर कुछ भी प्रभाव न डाला हो तो इसे मैं अपना दुर्भाग्य समझँगा। लेकिन कुत्तोंके बारेमें मैंने जो मत व्यक्त किया है सो पश्चिमकी शिक्षाके प्रभावसे किया है, ऐसा मैं नहीं मानता। पश्चिम एक छोटे सम्प्रदायको छोड़ दें तो यह सिखाता है कि मनुष्येतर प्राणिमात्रको मनुष्यकी भलाईके लिए मारनेमें कोई दोष नहीं है। इसीसे पश्चिमने जीवित प्राणियोंकी चीर-फाड़को प्रोत्साहन दिया है। पश्चिममें स्वादके लिए अनेक प्रकारकी हिंसा करनेमें दोष नहीं माना जाता। इन बातोंको मैं स्वीकार नहीं करता। पश्चिमके रिवाजके अनुसार तो जो निकम्मा हो गया हो ऐसे किसी भी प्राणीको मारनेमें पाप नहीं बल्कि पुण्य माना जाता है। मैंने जो विचार व्यक्त किया है, उसमें तो हर कदमपर मर्यादा है। शाकाहारको मैं हिंसा मानता हूँ, यह शिक्षा पश्चिमकी नहीं कही जा सकती। सिद्धान्त और उसके अमलका विचार करते हुए हमें व्यर्थकी दलीलों अथवा मिथ्यारोपोंको स्थान नहीं देना चाहिए। मेरे मतकी परीक्षा स्वतन्त्र रूपसे की जानी चाहिए। वह पश्चिमसे आया हो अथवा पूर्वसे, उसका मूल सत्य है अथवा असत्य, उसमें अहिंसा है अथवा हिंसा, इसपर विचार किया जाना चाहिए। मेरा विश्वास है कि उसका मूल सत्य और अहिंसा ही है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १४-११-१९२६

३१. वोठाका मेला

हमारे देशमें जगह-जगह मेले होते ही रहते हैं। वर्षमें कहीं-न-कहीं मेला होता ही रहता है। उनमें आसपाससे अनेक प्रकारके लोग आते हैं। बड़े मेलोंमें भाग लेनेके लिए तो लोग सारे हिन्दुस्तानसे आते हैं।

ऐसा ही एक मेला प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमाके अवसरपर धोलका ताल्लुकेके वोठा ग्राममें होता है। उसमें कांग्रेस जिला समितिकी ओरसे कुछ वर्षोंसे भाई डाह्याभाई स्वयंसेवकोंकी टुकड़ी इकट्ठी करके सेवा करते आ रहे हैं। इस साल भी उन्होंने स्वयं-सेवकोंकी माँग करते हुए अपील निकाली है। पिछले वर्ष और उससे भी पिछले वर्ष मैंने इस मेलेमें भाग लेनेका इरादा किया था लेकिन परिस्थितिकी लाचारीके कारण ऐसा नहीं कर पाया। मुझे खेद है कि में वहाँ इस वर्ष भी नहीं जा सकता। लेकिन जो लोग वहाँ सेवाके लिए जा सकते हों उन्हें मेरी सलाह है कि वे अवश्य जायें। धर्मार्थं होनेवाले मेलोंमें भी आज बुराईका प्रवेश हो गया है और यह बढ़ती जा रही है। ठग लोग वहाँ जाकर भोले लोगोंको धोखा देते हैं, अनेक प्रकारकी अनैतिक बातें