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दक्षिण आफ्रिकाकी परिस्थिति
और फिर पहले ही से अपने अनुकूल वायुमण्डल तैयार करके हम सम्मेलनको भी अच्छी सहायता पहुँचा सकेंगे। यहाँ, लोगोंको सम्मेलनके समय एक बड़ा प्रदर्शन करने से रोकना कठिन हो रहा है, क्योंकि इनकी समझमें उसका सम्मेलन में भाग लेनेवालोंपर असर पड़ेगा। मैं उन्हें समझा रहा हूँ कि किसी अच्छे ठोस कामका, जैसे, सफाई करके गन्दे मुहल्लोंकी कुछ गन्दगी कम कर सकनेका, उनपर भाषणों और प्रदर्शनोंसे कहीं अधिक असर पड़ेगा।
फिर भी मैं यह तो कदापि नहीं चाहता कि वे इसके ठीक उल्टे अर्थात् उदासीन, निष्क्रिय और आलसी बन जायें। जरूरत है इस जोश और शक्तिको समुचित रास्ते पर ले जानेकी। मैंने, हमसे सहानुभूति रखनेवाले अच्छेसे-अच्छे यूरोपीयोंसे बातें की हैं। वे सभी कहते हैं कि पिछले साल हमने जो हड़ताल और प्रार्थना दिवस मनाया था, उसका सही अर्थमें असाधारण असर पड़ा था और किसीने उन्हें अनुचित तो माना ही नहीं था। उससे उन्हें यह मालूम हुआ था कि हिन्दुस्तानी लोग अपने तरीकेसे और अच्छे ढंगसे सही काम कर रहे थे।

फील्ड स्ट्रीटके मकानके जिक्रसे मुझे बहुत ही पुरानी बातोंकी याद हो आती है। यह हिन्दुस्तानियोंकी सबसे पुरानी मिल्कियतों में से थी। दक्षिण आफ्रिकामें सबसे पहले बसनेवाले हिन्दुस्तानी व्यापारियों में से एक, हाजी अबूबकर अहमदने बहुत लम्बे पट्टे पर सम्पत्ति ली थी। यह स्व० पारसी रुस्तमजीको किरायेपर दे दी गई थी और उनके मरने के समयतक उन्हींके कब्जे में रही। इसे एक आदमीकी खास जायदाद कहने के बदले सार्वजनिक स्थान कहना ही अच्छा होगा। हिन्दुस्तानियोंकी अधिकांश अनौपचारिक सभाएँ यहीं होती थीं। सारे महत्त्वपूर्ण निश्चय यहींपर किये गये थे। गोखले अपने दिनका समय अधिकतर यहींपर बिताया करते थे। एन्ड्रयूजने यहींपर काम किया। यह अमीर और गरीब दोनोंका ही आश्रय स्थल था। यह एक सच्ची धर्मशाला बन गया था। पट्टेका समय बीतनेपर, डर्बन टाउन कौंसिलने नया पट्टा लिखनेसे इनकार कर दिया और सम्पत्तिके नीलामका विज्ञापन दे दिया। उस नीलाम में हिन्दुस्तानियोंको बोली लगानेका अधिकार नहीं दिया गया। डर्बन कौंसिलको यह मालूम था कि हिन्दुस्तानियोंके लिए वह जगह पाक थी; मगर इससे क्या होता है? वह यूरोपीयोंके हाथमें चली गई। इसीलिए एन्ड्रयूजने इसका जिक्र किया है और विस्मयका चिह्न लगाया है।

उनका इस समय वहाँ रहना, सचमुच ही ईश्वरकी कृपा है। दुर्भाग्यपूर्ण चेचकके इस प्रकोपसे सहज ही यूरोपीयों और हिन्दुस्तानियों, सबमें घबराहट फैल जाती। गोरे तो शायद बड़े ही सख्त उपाय काममें लाते और हिन्दुस्तानी भयसे किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाते। श्री एन्ड्रयूजने फौरन जो कार्रवाई की उससे बहुत बड़ा संकट सिद्ध हो सकने योग्य एक परिस्थिति टल गई।

उस धार्मिक पुरुषकी उपस्थितिसे सम्भवतः पलड़ा हिन्दुस्तानियोंके पक्षमें झुकेगा। यद्यपि सम्मेलनसे किसी भी बड़ी बातकी उम्मीद नहीं की जा सकती है किन्तु तो भी