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शान्तिवादी हड़तालकी शर्ते
३. यदि यह कहा जाये कि मजदूरीकी दरोंमें कमीके विरुद्ध हड़ताल (मुख्यतः आम हड़ताल ) राष्ट्रपर या सरकारपर 'बेजा दबाव डालनेका' प्रयत्न है तो यही बात युद्धके विरुद्ध की गई आम हड़तालके सम्बन्ध में भी कही जा सकती है। असलमें जबतक राष्ट्रका अधिकांश भाग इनका समर्थन न करे तबतक इनमें से किसीके भी सफल होनेकी कोई आशा नहीं है।
४. हड़तालकी तुलना आर्थिक नाकेबन्दीसे करना ठीक नहीं है। जहाँतक भूखके खतरेका सम्बन्ध है वहाँतक सबसे पहले हड़तालसे हड़तालियोंको ही कष्ट होगा। तथ्य तो यह है कि ट्रेड यूनियन कांग्रेसकी अभी हालकी हड़तालमें कांग्रेस लोगोंकी प्राणरक्षा और स्वास्थ्य-रक्षामें सहयोग देनेके लिए तैयार थी, किन्तु सरकारने उसका सहयोग लेनेसे इनकार कर दिया था।
५. कोई हड़ताल शान्तिवादी है या नहीं, इसका निर्णय मूलतः उस भावनासे होता है जिससे प्रेरित होकर हड़ताल की गई हो। युद्धके विरुद्ध की गई ऐसी हड़ताल शान्तिवादी नहीं होगी जिसका हेतु युद्धके विरुद्ध घृणा न होकर सरकारके सदस्योंके प्रति घृणा अधिक हो, और जिसके पीछे ऐसी भावना हो जिसका परिणाम गृह-युद्ध हो सकता है। इसी तरह मजदूरीकी दरोंमें कमीके विरोधमें की गई वह हड़ताल भी शान्तिवादी नहीं होगी जो मालिकों अथवा सरकारके सदस्योंके प्रति घृणा, अथवा समाज विरोधी भावनासे प्रेरित होकर की गई हो। किन्तु यदि उक्त दोनों प्रकारकी हड़तालें, इनमें भी निहित दोषोंके विरोधमें की गई हों तब वे शान्तिवादी हड़तालें होंगी।
६. यद्यपि यह बात मान ली गई है कि अभी हालकी बड़ी हड़तालमें हड़तालियोंने यदा-कदा अपनी वाणीसे और एकाध बार व्यवहारमें भी अशान्ति- वादी भावना व्यक्त की थी, किन्तु मुझे यह कहने में तनिक भी झिझक नहीं है कि उसमें हड़तालियोंका प्रमुख हेतु आत्मत्यागपूर्वक नैतिक विरोध व्यक्त करना ही था, समाजविरोधी शक्ति या व्यक्तिगत घृणा व्यक्त करना नहीं। इस तथ्य के कारण ही उसे आत्मिक बल मिला; उन लोगोंने जो आश्चर्यजनक अनुशासन दिखाया उसका रहस्य यही है।
७. जो शान्तिवाद यदा-कदा होनेवाली युद्धको निर्दयताओंको तो देखता है, किन्तु हमारी समाज-व्यवस्थाके अधीन निरन्तर होनेवाले निर्दय कृत्योंको नहीं देखता, ऐसा शान्तिवाद निकम्मा है। जबतक हमारा शान्तिवाद उस व्यापक मानवीय आन्दोलनमें व्यक्त नहीं होता जिसका हेतु केवल युद्धका अन्त करना ही नहीं, बल्कि हमारी उसी प्रकारकी अशान्तिवादी समूची सभ्यताका अन्त करना भी है, तबतक वह मानवजातिको आत्मिक प्रगतिमें बिलकुल सहायक न होगा; और तबतक जीवनके प्रति मानवका दृष्टिकोण यही रहेगा और उसपर इसका कोई प्रभाव न पड़ेगा।