पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/११

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भूमिका (( इस खण्डमें २१ जनवरीसे १५ जून, १९२७ के बीच तककी सामग्री संगृहीत है। खण्डके प्रारम्भमें ही गांधीजी भारतमें १० वर्ष पहले प्रारम्भ किये गये अपने प्रथम सत्याग्रह संघर्षका उल्लेख करते हैं। मीराबहनको अपने पत्रमें उन्होंने लिखा है : 'सारा ही [चम्पारनका ] दौरा स्फूर्तिदायक है। मेरे लिए चम्पारन पवित्र स्मृतियोंसे जुड़ा ही है। दरअसल चम्पारनने ही हिन्दुस्तानसे मेरा परिचय कराया । " (पृष्ठ ५) इन दिनों चम्पारन और दूसरी जगहोंमें गांधीजी खादीसे सम्बन्धित दौरा कर रहे थे । इस दरम्यान वे कई बार भावुक हो उठे हैं। आश्रमकी बहनोंको उसी दिन पत्र लिखते हुए उन्होंने लिखा: "जान पड़ता है इस वर्ष में बहुत दिनोंतक आश्रम में नहीं रह सकूँगा। इसका मुझे दुःख है; किन्तु हमें तो दुःखमें ही सुख मानना है । खादीके कामके लिए मुझे भ्रमण करना ही पड़ेगा । लाखों लोगोंको खादीका मन्त्र इसी तरह घूम-घूमकर दिया जा सकता है। " (पृष्ठ ७) गांधीजीने खादीके विषयमें घूम-घूमकर लोगोंको जो-कुछ बताया, उसका लोगोंपर बड़ा प्रभाव पड़ा | जनताकी स्वतन्त्र होनेकी इच्छा इन भाषणोंसे "शक्ति एवं स्फूर्तिमें बदल गई । " (पृष्ठ १९२) " गांधीजी लगातार बिहार, मध्य प्रदेश और बरार, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेशमें दौरा करते रहे। लगता है, उन्होंने जरूरतसे ज्यादा श्रम किया; फल यह हुआ कि २५ मार्चको उनका स्वास्थ्य एकाएक बहुत बिगड़ गया और उन्हें किसी पहाड़ी स्थानपर विश्राम करनेकी सलाह दी गई । (परिशिष्ट ३) इसे मानकर वे १९ अप्रैलसे ५ जूनतक मैसूरकी नन्दी पहाड़ीपर रहे। यह बीमारी बहुत ज्यादा शारीरिक श्रम और देश में व्याप्त परिस्थितियोंके परिणामस्वरूप थी। गांधीजीने एक मित्रको लिखा : "मैंने अपने सहयोगियोंको यह सोचनेकी गुंजाइश दी और स्वयं भी मेरा यही खयाल था कि मेरा शरीर लादे गये भारको किसी तरह सहन कर लेगा... क्योंकि महाराष्ट्रका करूँगा दौरा समाप्त करनेके बाद मेरा विचार नया अध्याय आरम्भ करनेका था; और मैंने उपयुक्त सूचना राजगोपालाचारीको दे रखी थी कि मैं अब वैसी उतावली नहीं .।" (पृष्ठ ४०२) ऐसा लगता था कि मनोवैज्ञानिक कारणोंपर नियन्त्रण रखना और भी कठिन है । डा० अन्सारीको लिखते हुए गांधीजीने स्पष्टीकरण दिया : “मेरी मुख्य कठिनाई है कि जबतक मैं पागलपनकी हालतमें न आ जाऊँ, तबतक अपने मनपर कैसे नियन्त्रण करूँ और उसे सोचनेसे कैसे रोकूं । परन्तु मैं नहीं समझता कि जो हिन्दू और मुसलमान इस तरहके काम कर रहे हैं, जिसके कारण मुझे बहुत जोर देकर सोचना पड़ता है, उसे कैसे रोक सकता हूँ। मैं यह भी नहीं जानता कि लाखों लोगोंकी जो मुखमरी बढ़ रही है, और जिसका मेरे मनपर असर हो रहा है, उसे कैसे रोकूं।" (पृष्ठ २९४-९५) । बहरहाल उन्हें बीमारीसे जो आध्यात्मिक शिक्षा मिली उसे उन्होंने उसी प्रकार विनम्रतापूर्वक स्वीकार कर लिया जैसे कि उन्होंने एक बार पहले भी, अगस्त १९१८से जनवरी १९१९ Gandhi Heritage Portal --