पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/१२

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छः (2 तककी लम्बी बीमारीके दौरान किया था । (खण्ड १५) दक्षिण आफ्रिका संघर्षके दौरान एक जर्मन सहयोगी कैलेनबेकको लिखते हुए उन्होंने कहा : 'मुझे आशा है कि मैं इस दण्डको उचित विनम्रतासे स्वीकार कर रहा हूँ और यदि वह मुझे बीमारीसे फिर उठने दे, तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं अपने आचरणको सुधार लूंगा, उसकी इच्छा जाननेका और अधिक प्रयत्न करूँगा और उसके अनुकूल कार्य करूंगा।" (पृष्ठ ३४०) " जैसा कि डा० वेन्लेस (पृष्ठ २०९-१०) और जीवराज मेहता (पृष्ठ २२६-२७) से हुई बातचीतसे स्पष्ट है -- गांधीजी काम करते रहनेके लिए अत्यन्त उत्सुक थे, परन्तु उन्होंने काफी हदतक तटस्थता अपना ली थी और सेवाके लिए भी जीवनके मोहसे चिपके रहना नहीं चाहते थे। इस वक्त लिखे गये एकके बाद दूसरे पत्रमें गांधीजीने अत्यन्त शान्त मानसिक अवस्थामें अपनी जीवन-समाप्तिको सम्भावनाका जिक्र किया है। "मैं १३ अप्रैल, १९२८ से आगे किसी तरह भी चल सकनेकी आशा नहीं रखता। मुझे और कुछ नई बात कहने या लिखनेको नहीं । हाँ, यह सम्भव है कि मैं कुछ और इकट्ठा कर लूँ, कुछ और अधिक सुझाव बता दूं या एक पैबन्द वहाँ लगा दूं और एक यहाँ लगा दूं । परन्तु वास्तवमें मेरा समय आ गया है। " (पृष्ठ २११) उसी पत्रलेखकको लिखे गये दूसरे पत्रमें उन्होंने कहा : “और तब सारी असाधारण सतर्कताके बावजूद वह [प्रकृति ] एक दिन अपना दूत भेज देगी; जो रातमें चोरकी तरह चुपकेसे सबकी नजर बचाकर ऐसी खुराक देगा जो मुझे चिर-निद्रामें सुला देगी । (पृष्ठ ४३२) इस वक्त गांधीजीका मुख्य काम खादीका रहा; और उन्होंने कांग्रेसके राजनीतिक कार्यक्रमको पूरी तरह मोतीलाल नेहरूके नेतृत्वमें चलनेवाली स्वराज्य पार्टीकी देख- रेखमें छोड़ दिया था । यद्यपि कांग्रेसने खादी कार्यक्रम सार्वजनिक रूपमें स्वीकार कर लिया था और खादीकार्यका संगठन करनेके लिए अखिल भारतीय चरखा संघ नामकी नई संस्था स्थापित हो गई थी तो भी बड़ी संख्यामें कांग्रेसियोंने इस कार्यक्रमके समर्थनमें उत्साह नहीं दिखाया। वे गौहाटी कांग्रेसमें स्वीकार की गई खादी सदस्यताके विरोधी बने रहे। ऐसा लगता है कि गांधीजीने इस परिस्थितिसे समझौता कर लिया था । कांग्रेस अध्यक्ष श्री एस० श्रीनिवास आयंगार द्वारा सदस्यताके मामलेपर झुक जानेके लिए दिये गये तर्कपर टिप्पणी करते हुए गांधीजीने कहा : "जहाँ बहुसंख्यक [समुदाय ] अल्पसंख्यकों द्वारा गहराईसे महसूस की जानेवाली किसी रायकी अपनी संख्याके बलपर पूर्ण अवहेलना करता हुआ आगे बढ़ता है वहाँ हिंसाकी गंध आने लगती है। इसलिए मुझे अध्यक्ष महोदयसे यह साफ-साफ कह देनेमें कोई झिझक नहीं हुई कि यदि अल्पसंख्यक सदस्य इस शर्तका पालन करनेको राजी न हों तो उन्हें उस शर्तको हटा देनेमें मदद करनी चाहिए । " (पृष्ठ ४८९) उन्होंने आगे कहा कि उन्हें [ गांधीजीको ] इस धाराके बारेमें अपनी राय बनाये रखने देनी चाहिए - यद्यपि इस रायका महत्त्व किसी भी दूसरे कांग्रेसी सदस्यकी रायसे ज्यादा नहीं होगा। -- Gandhi Heritage Portal