पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/१७

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ग्यारह " 'वर्ल्डस यूथ' के सम्पादकके सन्देश मांगने पर उन्होंने लिखा : सत्य और प्रेम संयुक्त रूपसे मेरे जीवनके पथ-प्रदर्शक सिद्धान्त रहे हैं। जिस परमेश्वरकी व्याख्या नहीं की जा सकती, यदि कदाचित् उसका कुछ भी निरूपण किया जा सकता हो, तो मैं यही कहूँगा कि ईश्वर सत्य है । सिवाय प्रेमके उसतक पहुँच पाना असम्भव हैं। प्रेम पूर्णरूपेण अभिव्यक्त तभी हो सकता है, जब मनुष्य अपनी खुदीको शून्य कर डाले, शून्यवत् होनेकी यह प्रक्रिया ही किसी स्त्री या पुरुष द्वारा किया जा सकनेवाला सर्वोत्तम प्रयत्न है। यही एकमात्र एक ऐसा प्रयत्न है जो करणीय है और यह केवल उत्तरोत्तर वर्द्धमान आत्मसंयम द्वारा ही सम्भव हो सकता है। (पृष्ठ ४८३) " Gandhi Heritage Portal