पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/१६

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दस अपना हृदय तो वहीं उँडेल सकते हैं जहाँ ऐसा करना हमारे लिए सम्भव है किन्तु (उँडेल देनेके बाद) पानी चाहे जहाँ वह सकता है। " (पृष्ठ ६) इस खण्डमें शामिल किये गये पत्रोंमें, मणिलाल और उनकी पत्नी सुशीला, आश्रमकी बहनों और मीराबहनको लिखे गये पत्र खास दिलचस्प हैं। उनसे गांधीजी ऐसे शिक्षकके रूपमें सामने आते हैं जिसके लिए, व्यक्तिके लिए भी "वैसे ही संरक्षण और देखरेखकी जरूरत है जैसी कि स्वराज्यके पूरे मसलेके लिए (पृष्ठ ४८१) वह आदर्शपर जमे रहनेके लिए दृढ़ प्रतीत होते थे परन्तु मानव व्यक्तित्वके प्रति सदा आदर-भाव रखते थे। उन्होंने अत्यन्त स्पष्टता और बिना रत्तीभर संकोचके मणिलाल और सुशीला गांधीको विवाहित अवस्थामें आत्मसंयमकी आवश्यकता समझाई (पृष्ठ ६०-६१, १४२-४३) आश्रमकी बहनोंको, जिनमें से बहुत-सी महिलाओंने औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, लिखे गये अपने पत्रोंमें गांधीजीने राष्ट्रीय पुनरुत्थानमें महिलाओंका महत्त्व समझाया और उन्हें दिलचस्प लगनेवाले समाचार सुनाये; आश्रमके मामलोंकी चर्चा की और उनसे अनुरोध किया कि वे अपनी हृदयकी दुर्बलताको छोड़ दें और अपने-आपको देशकी सेवा के लिए तैयार रखें। जब इनमें से बहुत-सी महिलाएँ १९३०-३२ के सत्याग्रह आन्दोलन में जेल गईं और उन्होंने पुलिसके अत्याचारोंका भी सामना किया तब धैर्यपूर्वक किये गये इस प्रयत्नका फल पर्याप्त रूपमें सामने आया । ● " परन्तु गांधीजीके इस स्वभावका सबसे अच्छा रूप मीराबहनको लिखे गये पत्रोंमें ही दिखाई देता है कि वे अपने प्रति स्नेहके बन्धनमें बँधे लोगोंसे किस तरह समयके अनुरूप कठोर या कोमल व्यवहार करते थे। मीराबहन १९२५ के अन्तमें आश्रम में आईं थीं। मीराबहनने गांधीजीसे मुलाकात होनेसे पहले ही अपना जीवन उन्हें समर्पित कर दिया था। (परिशिष्ट ५) उन्हें निजी तौर पर गांधीजीसे बहुत ज्यादा लगाव था और उनकी आवश्यकताओंकी पूर्ति करनेके लिए वह सदा उनके पास रहना चाहती थीं। परन्तु गांधीजी चाहते थे कि मीराहबनकी उनके प्रति श्रद्धा उनके कामके प्रति श्रद्धामें बदल जाये । “तुम मेरे कामको अपना ही समझकर करनेसे रोज मेरे सम्पर्क में आती हो ..। तुम मेरे पास मेरी खातिर नहीं, बल्कि मेरे उन आदर्शोंकी खातिर, जिस हदतक मैं उनका पालन करता हूँ, आई हो । .. काम करते हुए भगवान हमें निकट ला दे तो अच्छा ही है, लेकिन समान उद्देश्यकी पूर्तिमें वह हमें अलग-अलग रखे तो भी ठीक है।' (पृष्ठ ३२०) वह चाहते थे कि मीराबहन सब प्रकारसे एक कुशल महिला बने परन्तु उन्होंने उनसे कहा "तुम्हें अपने ही ढंगसे विकास करना चाहिए। . चाहे कुछ भी हो तुम्हें अपना व्यक्तित्व अवश्य कायम रखना चाहिए। जहां आवश्यक हो, मेरी बात तुम्हें नहीं माननी चाहिए। " (पृष्ठ १९४-९५) गांधीजीके अचानक बीमार पड़ जानेकी खबरसे मीराबहन घबरा गई और यह स्वाभाविक ही था कि वह उनके पास रहनेके लिए उत्सुक होती। गांधीजीने उनकी मनःस्थितिके परिवर्तनोंको तत्काल समझ लिया और मानवताके नाते उन्हें सान्त्वना देनेकी भरसक कोशिश की परन्तु उन्हें स्वेच्छासे काम करनेके लिए स्वतन्त्र रखा। 37 Gandhi Heritage Portal