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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्बन्ध है शास्त्रीजी उनसे सम्बन्धित सरकारके प्रत्येक कदमको सरल बना देंगे। दूसरे शब्दोंमें कहें तो दक्षिण आफ्रिकी सरकार उनसे यह आशा करेगी कि शास्त्रीजी उसकी बातोंको भारतीय समाज तथा भारत सरकारके सामने सहानुभूतिपूर्वक रखेंगे। इधर हमारे देशवासी भी आशा करते हैं कि शास्त्रीजी इस बातका जरूर आग्रह करेंगे कि समझौतेकी सम्मानजनक और उदारतापूर्वक व्याख्या की जाये और उसका पालन किया जाये । सामान्यतः दो प्रतिस्पर्धी उम्मीदवारोंको सन्तुष्ट करना कठिन होता है, परन्तु दक्षिण आफ्रिकामें, जहाँ परस्पर विरोधी हितोंकी टक्कर देखकर बड़ी हैरानी होती है, यह अब और भी ज्यादा कठिन काम है। किन्तु मैं जानता हूँ कि अगर कोई व्यक्ति दोनों पक्षोंके प्रति समानरूपसे न्याय कर सकता है और दक्षिण आफ्रिकाके सभी सम्बन्धित दलोंको सन्तुष्ट कर सकता है, तो वे श्रीयुत श्रीनिवास शास्त्री हैं। मुझे निश्चित रूपसे ऐसा लगता है कि संघ सरकारके मन्त्री नये एजेंटसे यह अपेक्षा नहीं रखते हैं कि भारतीय समाजको उसके उचित अधिकार दिलाने में वे तनिक भी झुकेंगे। हां, ज्यादासे-ज्यादा उनसे यह आशा की जा सकती है कि वे भारतीय प्रवा- सियोंको किसी भी हालतमें १९१४ के समझौतेका [१] उल्लंघन करके आगे बढ़ने से कुछ समयतक रोकें, कमसे-कम तबतक रोकें जबतक कि वहाँके भारतीय अपने अनुकरणीय आत्मसंयम और व्यवहार द्वारा १९१४ के समझौते से प्राप्त स्थितिसे और आगे बढ़नेकी अपनी पात्रता न सिद्ध कर दें। अतः यदि हमारे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय भाई भारतके इस एजेंट जनरलके कामको काफी आसान बनाना चाहेंगे और अपनी स्थितिको सुरक्षित बनाना चाहेंगे तो वे उनसे आश्चर्यजनक कामोंकी आशा नहीं करेंगे। उनका ऐसी आशा करना ठीक नहीं होगा कि अभी एक सम्मानपूर्ण समझौता हो चुका है, और चूंकि उसपर अमल करानेके लिए एक महान् भारतीय हमारे यहाँ आ रहा है, इसलिए अब तो हमारी पुरानी स्थितिमें एकदम कायापलट हो जायेगी। उन्हें याद रखना चाहिए कि परम माननीय शास्त्री वहां उनके वकील बनकर उनकी प्रत्येक व्यक्तिगत शिकायतको दूर करनेके लिए नहीं आ रहे हैं। उन्हें मामूली व्यक्तिगत शिकायतोंको विस्तारसे सुना-सुनाकर परेशान करना सोनेके अंडे देनेवाली मुर्गीकी हत्या कर देनेके समान है। वे वहाँ भारतके सम्मानके न्यासी बनकर जा रहे हैं। वे वहाँ सर्वसाधारण भारतीय प्रवासी समाजके अधिकारोंकी और स्वाधीनताकी रक्षा करने के लिए जा रहे हैं। वे वहाँ यह देखेंगे कि संघ सरकार कहीं कोई नया प्रतिबन्धात्मक कानून तो नहीं बनाती। और वे यह भी देखेंगे कि प्रतिबन्धात्मक मौजूदा कानूनोंका पालन उदारतापूर्वक किया जाता है और उनके पालनमें भारतीयोंके निहित अधिकारोंका पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है। इसलिए यदि उनसे कोई व्यक्तिगत शिकायत की भी जाये तो वह उस स्थिति से मेल खाती हुई हो जो मैंने स्पष्ट रूपसे प्रस्तुत कर दी है अर्थात् वह व्यक्तिगत शिकायत किसी व्यापक सर्वसाधारण सिद्धान्तको व्यक्त करती हो। इसलिए यदि व्यक्तिगत मामलोंमें शास्त्रीजीकी सहायता मांगने में दक्षिण आफ्रिकाका भारतीय समाज विवेकपूर्ण आत्मसंयमसे काम न लेगा, तो वह एजेंटकी

  1. देखिए खण्ड १२ परिशिष्ट २५ ।