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भारतके पहले राजदूत

जो इन सुधारोंमें दिलचस्पी लेती हैं, इस तरहकी एक भी घटनाकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । वे पत्रलेखक द्वारा कही बातोंकी जाँच-पड़ताल करें, और यदि वे सही प्रमाणित हों, तो स्पृश्योंके कार्योंकी निन्दा करें । अस्पृश्यता जैसी बुराइयोंको जड़से उखाड़ने के लिए जागरूक लोकमत तैयार करने के समान शक्तिशाली दूसरा कोई उपाय नहीं है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २८-४-१९२७

२७८. भारत के पहले राजदूत

दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंको इस खबरसे बड़ी राहत होगी कि परम माननीय वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीने दक्षिण आफ्रिकामें पहला भारतीय राजदूत बनना स्वीकार कर लिया है, बशर्ते कि भारत सरकार अन्ततः उनसे वह पद ग्रहण करनेके लिए कहे। सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी और शास्त्रीजीने यह निर्णय करके बहुत बड़ा त्याग किया है। यह बात तो सभी जानते हैं कि यदि उनपर छोड़ दिया जाता, तो वे भारत में अपना काम छोड़कर इस जिम्मेदारीको अपने सिरपर लेनेके जरा भी इच्छुक नहीं थे। परन्तु जब उनके मित्रोंने उनसे साग्रह यह कहा कि केवल वे ही उस समझौतेपर सफलतापूर्वक अमल शुरू कर सकते हैं, जिस समझौतेको कराने में उन्होंने बहुत बड़ा हिस्सा लिया है, तो उन्होंने मित्रोंकी बात मंजूर कर ली। दक्षिण आफ्रिकासे समय-समयपर यहां आनेवाले तारोंसे हमें पता चलता है कि वहाँके यूरोपीय भी इस बातके लिए उत्सुक हैं कि शास्त्रीजी इस सम्माननीय पदको ग्रहण करें । जब शास्त्रीजी हबीबुल्ला शिष्टमण्डलके सदस्य के रूपमें थोड़े दिनोंके लिए दक्षिण आफ्रिका गये थे तब उनकी वक्तृत्व-शक्ति, स्पष्ट झलकनेवाली ईमानदारी, मधुर विवेक- शीलता और असीम लगनने दक्षिण आफ्रिकी संघकी सरकार और वहाँके यूरोपीयोंके हृदय में उनके प्रति अच्छी धारणा और आदरके भाव कर दिये थे। मैं खुद जानता हूँ कि हमारे दक्षिण आफ्रिकावासी भाई इस बातके लिए कैसे व्यग्र और चिन्तातुर हैं कि किसी प्रकार शास्त्रीजी ही भारतके पहले एजेंट बनें। और श्रीयुत श्रीनिवास शास्त्री के लिए भी, जिन्हें परमात्माने ऐसा उदार हृदय दिया है, दक्षिण आफ्रिकाके ऐसे सर्वसम्मत अनुरोधको अस्वीकार करना असम्भव था । अब यह प्रायः निश्चित है कि इस पदपर उनकी बाकायदा नियुक्ति कर दी जायेगी और उसकी घोषणा शीघ्र ही कर दी जायेगी ।

प्रथम एजेंट जनरलका अपने लिये एक निश्चित काम होगा । निःसन्देह संघ सरकारको और हमारे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय भाइयोंको भारतके इस पहले राजदूतसे बड़ी आशाएँ हैं । निःसन्देह संघ सरकार यह सोचती है कि शास्त्रीजी चूँकि स्वयं भारतीय हैं और एक ख्यातिप्राप्त व्यक्ति हैं, जहाँतक भारतीयोंका

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