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३२०. पत्र : मणिलाल और सुशीला गांधीको

नन्दी हिल्स, मैसूर
वैशाख सुदी १० [११ मई, १९२७ ][१]

चि० मणिलाल और चि० सुशीला,

तुम्हारा पत्र तो मुझे नहीं मिला, पर रामदासको लिखा तुम्हारा पत्र मैंने पढ़ा है। रामदास यद तुम्हारा पत्र भेजना भूल गया ।

तुम दोनोंकी गाड़ी ठीक चल रही है, इससे मुझे सन्तोष हुआ । में अहर्निश यही कामना करता हूँ कि तुम दोनों एक-दूसरेको आगे बढ़ाने में सहायक होओ।

मेरी तबीयत सुधर रही है। मैंने तुम्हें पहले भी लिखा था कि तुम्हारी इच्छाके अनुसार तुम्हें तार भेजा तो था पर तुम्हारा स्टीमर बन्दरगाहसे चल चुका था । 'गीता' के श्लोक तुम्हें नियमपूर्वक भेजे जा रहे हैं। उनका बार-बार मनन करना ।

श्रीनिवास शास्त्री अब वहाँ कुछ दिनोंमें पहुँच जायेंगे। उनसे मिलते रहना और वे जो मदद माँगें, देना ।

बापूके आशीर्वाद

[ पुनश्च :]

लगता है इस प्रदेश में अभी दो-तीन मास रहना पड़ेगा। यदि सोधे पत्र लिखना चाहो तो बंगलोर भेजना। इस पहाड़से जून महीनेमें नीचे उतर आना पड़ेगा ।

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ११३२) से ।

सौजन्य : सुशीलाबहन गांधी

३२१. पत्र : फूलचन्द शाहको

बुधवार, ११ मई, १९२७

तुम्हारा पत्र मिला। गोंडलमें समाचारपत्रोंकी प्रवेश-बन्दीके खिलाफ गोंडलसे बाहरके लोग सत्याग्रह करें, यह सत्याग्रह नहीं कहलायेगा। गोंडलमें गोंडलसे बाहरके लोग तभी सत्याग्रह कर सकते हैं जब गोंडलकी समस्या सारी देशी रियासतोंकी समान समस्या हो और गोंडल में विजय होनेसे सभी रियासतों में सुधार हो सके। और समाचारपत्रोंपर लगी हुई रोकको हटाने के लिए सत्याग्रह करना तो चमड़ेकी डोरीके लिए भैंस मारने [२]या गाजर खाने के लिए तो शास्त्र-वचनका प्रमाण देने और ऊँट यों

  1. वर्षका निर्धारण पाटके आधारपर किया गया है।
  2. अर्थात् किसी छोटो चीजके लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाना।