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पत्र : आश्रमकी बहनोंको

मैं स्वयं सम्पादन करता हूँ । मुझे आशा है कि इसमें आपको कोई आपत्ति नहीं होगी।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्रीमती ई० बमलेट

द्वारा इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया

कलकत्ता

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ४४४३) की फोटो-नकलसे ।

सौजन्य : श्रीमती कार्लाइल बमलेट

३१९. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

नन्दी दुर्ग
मौनवार, वैशाख सुदी ९ [१० मई, १९२७][१]

बहनो,

चोरोंके बारेमें तुम्हारा विचार ठीक लगता है। अभी तो इतना ही काफी है कि तुम यह भूल जानेकी कोशिश करो कि तुम अबला हो। इस बारेमें मैंने जो लिखा है उसका कोई यह अर्थ तो भूलसे भी न करे कि पुरुषोंको अपना स्त्री-रक्षाका धर्म भूल जाना है। स्त्री अपना अधिकार प्राप्त करने की कोशिश करे, उससे यदि पुरुष यह मान ले कि अब वह होशियार हो गई है और बैठा रहे, तो उसकी गिनती कायरों और निर्लज्जोंमें होगी। वह कायर माना जायेगा । उसीने स्त्रीको पराधीन रखा है, इसलिए उसकी रक्षाका काम उसे करना ही है। आश्रममें हम पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही सावधन बनने और एक दूसरेकी स्वतन्त्रताका विकास करनेकी कोशिश कर रहे हैं। मगर वांछित स्थिति प्राप्त हो, तबकी बात तबसे रही । इसलिए तुम्हें जाग्रत करने और प्रोत्साहन देनेके लिए मैं जो पत्र लिखता हूँ वह एक चीज है; और पुरुषोंका तुम्हारे प्रति कर्त्तव्य दूसरी चीज है। इसलिए जबतक एक भी पुरुष आश्रम में जिन्दा है, तबतक बहनें अपनेको सुरक्षित ही समझें ।

तुम्हारे पत्रमें सूरजबहनके बारेमें कोई समाचार नहीं है ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६४८) की फोटो-नकलसे ।

  1. आश्रम में चोरकि आनेके उल्लेखसे ।