३५३.भयंकर कर्म
डर्बनसे भेजे हुए एक पत्रमें श्री एन्ड्रयूज लिखते हैं :[१]
मैंने उम्बिलोके मन्दिरको देखा है। वास्तव में उम्बिलोको डर्बनका ही एक बाहरी मोहल्ला कहना चाहिए। कई वर्ष पूर्व यह मन्दिर बनाया गया था, तब मेरे मनमें कुछ गलत धारणाएँ थीं। अपने कडुए अनुभवोंसे मुझे यह शिक्षा मिली कि सभी मन्दिर "देवालय" नहीं होते। वे शैतानके निवासस्थल भी हो सकते हैं। जबतक इन पूजास्थलोंके पुजारी भगवानके अच्छे बंदे नहीं होते तबतक उन पूजास्थलोंका कोई महत्त्व नहीं है। मन्दिरों, मस्जिदों और गिरजाघरोंको इन्सान जैसा बनाता है, वैसे ही वे बन जाते हैं। इसलिए इस स्थानमें, जिसे लोग मन्दिरके नामसे पुकारते हैं, किये जानेवाले कष्टप्रद और घोर अन्धविश्वासपूर्ण कर्मोका हाल पढ़कर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। यह जानना कि इन कार्योंकी शुरुआत कैसे हुई काफी आसान है। दक्षिण आफ्रिकामें तीन तरहके भारतीय हैं। स्वतन्त्र भारतीय व्यापारियोंका इन जघन्य कृत्योंसे कोई सरोकार नहीं है। और न ही उपनिवेशमें जन्मे उन भारतीयोंका जिन्होंने बड़ी-बड़ी बाधाओंके बावजूद काफी मात्रामें शिक्षा प्राप्त कर ली है। तीसरी किस्मके लोग वे गिरमिटिया भारतीय हैं जो अब स्वतन्त्र हो गये हैं। वे स्वभावतः भारतके गरीबसे-गरीब तबकेके लोग हैं। और इन बेचारे पुरुषों और स्त्रियोंको अज्ञान तथा अन्धविश्वासोंसे मुक्त करानेके लिए न तो सरकारने कभी कोई प्रयत्न किया है, न उनके मालिकोंने और न ही दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए स्वतन्त्र भारतीय समुदायने । परिणाम यह होता है कि वे ऐसे अंधविश्वासी और कुटिल स्वभाववाले लोगोंके चंगुलमें फँस जाते हैं, जो अपनेको पुजारी, पण्डा या साधुके रूपमें पेश करते हैं। वे कुछ संस्कृतके श्लोक बोलते हैं, जिनके अर्थ वे खुद नहीं जानते और उनका उच्चारण भी बहुत ही भद्दी अशुद्धियोंके साथ करते हैं। और अनेक प्रकारकी श्रद्धा उत्पन्न करनेवाली क्रियाएँ करते हैं। और ऐसे कर्मोंके लिए भला मन्दिरसे अधिक अच्छा स्थान और कहाँ हो सकता है, क्योंकि मन्दिरोंमें ही सीधे-सादे लोग इकट्ठे होते हैं, और मन्दिरके वातावरणमें चूंकि भक्ति तथा पवित्रताकी भावना भरी रहती है, वहीं हर प्रकारका अन्धविश्वासयुक्त कर्म भी श्रद्धासे देदीप्यमान हो जाता है। मेरा खयाल है कि यदि दक्षिण आफ्रिकाकी सरकार इन कुकर्मोको बन्द करना चाहे तो वहाँका प्रचलित कानून ही इतना व्यापक है कि उसीके अधीन सरकार ऐसे कमको बन्द करा सकती है। १. Gandhi Heritage Portal
- ↑ यह पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। उसमें यह कहा गया था कि उम्बिलो मन्दिरमें भारतीयों द्वारा " आगपर चलने " जैसे भयानक आत्मपीदक खेलोंका प्रदर्शन होता है। उसमें यह लिखा था कि नेटाल एडवर्टाइजरने ऐसे दृश्योंके चित्र भी अपने पत्र में छापे हैं।