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३५४. पत्र : सतकौड़ीपति रायको

नन्दी हिल्स, (मैसूर राज्य)
१९ मई, १९२७

प्रिय सतकोड़ी बाबू,

परसों मुझे आपका पत्र उस दिनकी डाक बन्द हो चुकनेके बाद मिला। कल तो आपका पत्र निबटाना सम्भव ही नहीं था । आपकी परेशानियोंमें मुझे आपसे पूरी सहानुभूति है। परन्तु मुझे लगता है कि जिस दिशामें आप मेरी सहायता चाहते हैं, वह मेरे बसकी बात नहीं है। तो भी आप कृपया अपनी सम्पत्तिका सारा विवरण दीजिए। वह कहां स्थित है, कितनी है, क्या उसपर इमारतें भी बनी हुई हैं, यदि हैं तो उनकी लम्बाई चौड़ाई कितनी है ? इस जानकारीका होना मेरे लिये लाभदायक होगा । परन्तु आपका मामला असाधारण नहीं है। मैं बहुतसे लोगोंको जानता हूँ जो इसी तरहकी कठिनाईसे गुजर रहे हैं। अपने ध्येयकी तरफ आगे बढ़ते हुए हमें जिन संकटोंको पार करना पड़ता है, यह भी उनमेंसे एक है। मैं चाहता हूँ कि आप दार्शनिकों जैसी शान्तिसे अपनी विपत्तियोंको सहन कर लें। मैं जानता हूँ कि आप ऐसा ही करेंगे । परन्तु आप यह क्यों कहते हैं कि दिवालिया करार दिये जानेकी बात आप सोच भी नहीं सकते । यदि उधार लेनेवाला फलने-फूलनेवाले उद्योगमें लगानेके लिए सच्चे भावसे उधार लेता है, तो उसका इस तरह दिवालिया हो जाना पाप नहीं है। मान लीजिए कि मेरा अपना उद्योग मेरे किसी कसूरके बिना असफल हो जाता है और उधार देनेवालेको मालूम हो जाता है कि मेरे पास पैसा वापस देनेका कोई साधन नहीं है। यद्यपि जैसा कि मुझे करना चाहिए, में दिवालियेपनके बावजूद पैसा वापस देना चाहता हूँ, परन्तु यदि वह लेनदार अधीर ही हो उठता है, तो फिर मेरे लिये केवल एक ही सम्मानजनक मार्ग खुला रह जाता है कि मैं अपनेको दिवालिया घोषित कर दूं। मेरा दिवालिया करार कर दिया जाना ही एक ऐसा रास्ता है, जिससे मैं आगे भी व्यापार कर सकता हूँ । वकीलके रूपमें आप दिवालियेपनके कानूनका रहस्य समझते हैं। इसका सृजन इसलिये किया गया था कि ईमानदार परन्तु अभागे उत्साही व्यक्तियोंको संरक्षण दिया जा सके तथा व्यवसाय एवं उद्यमको बढ़ावा मिल सके। निःसन्देह बढ़िया नियम तो यह है कि ऋण न लिया जाये। परन्तु इस सुनहरे नियमका हममें से बहुत थोड़े लोग पालन करते हैं। इसलिए दूसरे दर्जेका श्रेष्ठ उपाय यह है कि पराजय स्वीकार न की जाये परन्तु दिवालिया करार देनेवाली अदालतकी शरण में जाकर जीवनका नया अध्याय आरम्भ किया जाये और यदि अगले उद्यममें सफलता मिले तो स्वेच्छासे मूल ऋणदाताका पैसा लोटा दिया जाये। ऐसे लोगोंके उदाहरण प्रसिद्ध हैं, जो स्वेच्छासे दिवालिये बन गये और बादमें उन्होंने