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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं तुमसे पूरी तरह सहमत हूँ कि कर्म और ईसाई धर्म साथ चल सकते हैं। यदि तुम 'यंग इंडिया' को पढ़ती रही हो, तो तुम्हारे ध्यानमें आया होगा कि पिछले साल मैं प्रति शनिवार अपने राष्ट्रीय विद्यालयके विद्यार्थियोंको 'न्यू टेस्टामेंट' पढ़कर सुनाया करता था। मैं "बिना किसी कारण " [१] इन शब्दोंपर लड़खड़ा गया और इन शब्दोंकी व्याख्या करते हुए मैंने इस चीजको अनावश्यक कहकर अस्वीकार कर दिया। परन्तु जब मैंने तुम्हारी बातको मिला कर देखनेके विचारसे मोफात और वेमाउथके अनुवादोंको, जो मेरे पास ही पड़े थे, पलटा तो उससे मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। सारे धर्म-ग्रन्थोंको पढ़ते हुए मैंने एक बात सीखी है। उनका शब्दार्थ कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए । अपितु उनका सार सोच-समझ कर ग्रहण करना चाहिए । जो सत्य और अहिंसाकी कसौटीपर खरे नहीं उतरते उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए । मैं जानता हूँ कि ऐसी सही व्याख्या के बावजूद कठिनाई अवश्य हुई थी। परन्तु यदि मनुष्य में धैर्य हो एवं उसे ईश्वरपर विश्वास हो तो इन कठिनाइयोंका समाधान हो जाता है।

मैं तुम्हारा पत्र श्री जोन्सको भेज रहा हूँ। क्योंकि मुझे कोई सन्देह नहीं है। कि वह तुम्हारी दलील देखना चाहेंगे । निकट भविष्यमें उनसे मेरी मुलाकात होनेकी कोई सम्भावना नहीं है, क्योंकि अभी कुछ महीनोंतक में दक्षिणमें रहूँगा। तुम पत्र सदाकी तरह आश्रमके पतेपर भेजती रहो।

आत्मकथा " अभी पूरी नहीं हुई। गणेशन तुम्हें 'आत्मकथा ' की प्रति नहीं भेज सकते । तीन भाग जो पूरे हो गये हैं, पुस्तक रूपमें प्रकाशित होने जा रहे हैं। परन्तु अभी तो तुम्हें 'यंग इंडिया' के अंकोंपर ही निर्भर रहना होगा, जिनमें आजतकके परिच्छेद हैं। तुम ये खण्ड मणिलालसे उधार ले सकती हो या जबतक ये तीनों भाग पुस्तक रूपमें छप न जायें, तुम्हें इन्तजार करना चाहिए। तुमको जान लेना चाहिए कि 'आत्मकथा' लिखना आरम्भ करनेसे पूर्व मैंने 'दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास [२]' समाप्त किया था। मूल गुजरातीमें है। अब गणेशन इसका अनुवाद किश्तों में प्रकाशित कर रहे हैं। मुझे लगता है कि इतिहासके अंग्रेजीमें उपलब्ध होनेमें अभी समय लगेगा ।

दक्षिण आफ्रिकामें भारतके प्रथम प्रतिनिधि श्री शास्त्रीसे अवश्य मिलना । वे बहुत ही श्रेष्ठ व्यक्ति हैं। जैसा कि तुम जानती हो वे गोखलेके उत्तराधिकारी हैं। वे तुम्हारे बारेमें सब कुछ जानते हैं और स्वयं तुमसे मिलनेको उत्सुक हैं।

  1. सेंट मैथ्यू, पद २२ । प्रामाणिक संस्करण में मिले इन शब्दोंको संशोधित तथा बादके संस्करणोंमें निकाल दिया गया है ।
  2. देखिए खण्ड २९ ।