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पत्र : सोंजा श्लेसिनको


वर-वधूको एवं सभी मित्रों तथा परिवारके सदस्योंको, जो आनेवाला समारोह मनानेके लिए एकत्र हुए हों, मेरा स्नेह दें और अपने लिये तथा श्रीमती अब्बासके लिए भी मेरा स्नेह स्वीकार करें।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० ९५५८) की फोटो-नकल से ।

३६९. पत्र: सोंजा श्लेसिनको

आश्रम
साबरमती [१]
२२ मई, १९२७

प्रिय कुमारी श्लेसिन,

जैसा कि तुम जानती हो, मैं अभी बिस्तरपर पड़ा हूँ। इसलिए तुम्हारे २० अप्रैलके उस पत्रका, जो अभी मिला है, उत्तर बोलकर लिखवाना पड़ रहा है। यह याद नहीं आता कि मैंने तुमको लिखे अपने सारे पत्रोंमें क्या लिखा है । जहाँतक मुझे याद पड़ता है, तुम्हारा कोई एक भी पत्र ऐसा नहीं, जिसकी प्राप्ति स्वीकृति न भेजी गई हो। तुमने मेरे अभिनन्दनमें बहुतसे वाक्य लिखे हैं, जिन्हें मैं स्वीकार नहीं करता और कर भी नहीं सकता । परन्तु उनमें से, यद्यपि इस सम्बन्धमें तुम्हारा अनुभव भिन्न है, पत्रोंका तत्काल उत्तर देनेवाली बातको अधिकारपूर्वक भी स्वीकार कर सकता हूँ, क्योंकि मेरे परिचितोंमें से प्रत्येकने अन्य गुणोंकी अपेक्षा तत्काल पत्रोत्तर देनेके लिए मेरी प्रशंसा की है।

मुझे तुम्हारा ४ जनवरीका कोई पत्र नहीं मिला। मेरी फाइलमें ३ जनवरीका पत्र जरूर पड़ा है। मैं नहीं समझता कि मैं तुम्हें उसका उत्तर दे चुका हूँ; दिया भी हो तो क्या विस्तारपूर्वक दिया है ? यह पत्र आश्रममें ३ फरवरीको पहुँचा था । मेरे दौरेमें होनेके कारण वह पता बदल कर मेरे पास भेज दिया गया था। इसके तुरन्त बाद में बीमार पड़ गया।

श्री स्टेन्ली जोन्सकी पुस्तक [२] मैंने केवल सरसरी तौरपर पढ़ी है। क्योंकि मैं दौरेके दौरान बहुत कम अध्ययन कर सका । यह तो मेरे लिये सम्भव भी नहीं था कि उन सारी पुस्तकोंपर, जो मेरे पास आई थीं, मैं नजर डाल सकता। यह पुस्तक मैंने इसलिए पढ़ी कि इसके साथ स्टेन्ली जोन्सका, जिन्हें में बहुत अच्छी तरह जानता मैं हूँ, पत्र भी था। मुझे उनका सुझाव याद नहीं है और इस समय मेरे पास उनकी पुस्तक भी नहीं है।

  1. स्थायी पता ।
  2. द क्राइस्ट ऑफ द इंडियन रोड।