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४६७. पत्र : कुवलयानन्दको

कुमार पार्क
बंगलोर
८ जून, १९२७

प्रिय मित्र,
इतनी तत्परतासे जवाब देने के लिए धन्यवाद । मैं मक्खनकी मात्रा बढ़ानेका

प्रयत्न करूंगा ।

प्राणायामसे कुछ कठिनाई नहीं होती; और मैं नियमतः बिना रुके पूरी गहरी लम्बी श्वास ले पाता हूँ ।

आपने शवासनके जो प्रभाव बताये थे, मुझे उनका अनुभव नहीं हुआ। कहीं ऐसा तो नहीं है कि निर्धारित दो मिनटका समय बहुत कम हो। मैं जब पीठके बल सीधा १५ मिनट लेटा करता था, तब तरोताजा महसूस करता था ।

सर्वांगासनका भी कोई प्रत्यक्ष प्रभाव मुझे दिखाई नहीं दे रहा है। अभी शरीर और पाँवके बीच जिस कोणपर मैं इस आसनकी मुद्रा धारण करता हूँ क्या उस कोण को बढ़ानेकी या उस कोणपर अधिक समयतक आसन करनेकी जरूरत है ?

मैं मालिशकी बात कहना भूल गया था । वह बिना रुकावटके जारी रखी गई है। लेकिन पेटकी तथा दिलकी मालिश कुछ समयसे छोड़ दी गई है। पेटकी मालिश इस आशंका से छोड़ दी गई कि लगातार मालिशसे कहीं आंतोंकी मांसपेशियाँ कमजोर न पड़ जायें और मालिशसे कहीं आँतोंको यह आदत ही न हो जाये कि ठीकसे साफ पाखानाके लिए हमेशा मालिश करना जरूरी हो जाये । दिलकी मालिश मैंने यह सोचकर छोड़ दी कि अपने आप ही मनने तर्क किया, जो शायद गलत तर्क था, कि मालिशका असर दिलतक नहीं पहुँच सकता है, जो पसलियों और माँसके एक ठोस खोलके अन्दर तिर रहा है। अब चूँकि आपने मालिशकी बात सोची है और पेट की तथा दिलकी मालिशका विशेष रूपसे उल्लेख किया है, मैं मालिश कराना फिर शुरू कर दूंगा। लेकिन अपने अगले पत्रमें आप कृपया मेरे इस सन्देहका जवाब दीजिएगा।

हृदयसे आपका,

श्रीमद् कुवलयानन्दजी
कुंजवन, लोनावाला
अंग्रेजी (एस० एन० १२५९२) की फोटो-नकलसे ।