४६८. पत्र: कुमीको
८ जून, १९२७
मैंने तुम्हारा और हरिलालका पत्र पढ़ लिया है। हरिलालके पत्रोंसे न तो मुझे आश्चर्य होता है न दुःख । उसका जन्म उस समय हुआ जिसे मैं कुछ हदतक अपने विषयभोगका काल मानता हूँ। उस समय मैं मांसाहार कर चुका था और सोचता था कि स्वतन्त्र होनेपर और अधिक करूंगा। मेरे साथी भी अच्छे न थे। हालाँकि यह मैं उस समय जानता नहीं था। लेकिन इन सभी बातोंका प्रभाव बालकोंपर अदृश्य रीतिसे पड़े बिना नहीं रहता। इसलिए हरिलाल आज जिस स्थितिमें है उसके लिए मैं और जिस हदतक इस विषयभोगमें बा की सहमति थी उस हदतक बा, दोनों जिम्मेदार हैं। फिर हरिलालका दोष क्यों निकालें ? इसलिए तुम्हें भी दुख माननेके कोई कारण नहीं हैं। चि० बलीके ऊपर उसने जो आरोप लगाया है वह जरूर बुरा है...[१] मैं स्वयं तो यह मानता हूँ कि हरिलाल अपनी घोर निद्रासे जगेगा और अच्छा बनेगा। हो सकता है बाप होनेके नाते मैं मोहवश ऐसा सोचता हूँ । अथवा मनुष्य होने के नाते उसे आशीर्वाद देनेकी इच्छा ही मुझसे यह वाक्य लिखवाती हो । चाहे जो भी हो हम तो यही इच्छा करें कि ईश्वर उसे सुबुद्धि दे ।
बापूके आशीर्वाद
- [ गुजरातीसे ]
- महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
- सौजन्य : नारायण देसाई
४६९. पत्र : तुलसी मेहरको
कुमार पार्क, बगलोर
८ जून, १९२७१[२]
तुम्हारा पत्र मिला । तबीयत अच्छी हो गई है जानकर आनंद हुआ। अब दूधको छोड़ने की कोई आवश्यकता न समझी जाय । शरीर जनताके लिये है और मोक्षका दवा बन सकता है ऐसा समझकर धर्मानुसार यथाशक्ति रक्षा करना प्रत्येक