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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और कुछ इस्तेमाल नहीं करेंगे और यदि सम्भव हुआ तो अपने विदेशी कपड़ोंको जला डालेंगे।

आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि चूँकि यह विद्यार्थियों की सभा है, मैं एक और विवयके प्रति संकेत किये बिना इस भाषणको समाप्त नहीं कर सकता। वह विषय है ब्रह्मचर्यं। उन्होंने कहा कि मेरा विद्यार्थियोंके साथ काफी सम्पर्क एवं सम्बन्ध रहा है। और मुझे इस बातका पता चला है कि विद्यार्थी समाजको चारित्रिक अधः पतनने घेर रखा है। मैं इस सम्बन्ध में अपने विचार ‘यंग इंडिया’, ‘नवजीवन’ और ‘आत्मकथा’ में प्रकट करता रहता हूँ। परन्तु मैं आपका आगे और पतन न हो, इसलिए चेतावनी दे रहा हूँ। आप लोगोंके चरित्रमें विकारका आ जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। सारे देशका वातावरण भ्रष्ट विचारोंसे इतना भर गया है कि आप लोगोंके लिए इसके प्रभावसे बचे रहना लगभग असम्भव है। पाठ्य-पुस्तकें, सिनेमा, रंगमंच सब अनैतिकताके प्रभावको फैला रहे हैं। यदि विद्यार्थियों को समय रहते चेतावनी न दी जाए, और आवश्यक सावधानी न बरती जाए, तो सारा देश नष्ट हो जायेगा। विद्यार्थियों को बचाने के लिए वीर स्वामी श्रद्धानन्दने आधुनिक शहरी जीवनके आकर्षणों से बहुत दूर हिमालयकी तलहटीमें गुरुकुलकी स्थापनाकी थी। सम्भव है उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं में दोष रहे हों, परन्तु आदर्श ठीक है और इस आदर्शको नष्ट नहीं होने देना चाहिए।

भाषण जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि कुछ एक बमों और कारतूसोंकी मदद से स्वराज्य प्राप्तिका प्रयत्न केवल पागलपनसे भरा एक विचार है। इन साधनोंसे जो स्वराज्य प्राप्त किया जायेगा, वह देशके गरीब लोगोंके लिये नहीं होगा। गरीबोंके लिये स्वराज्य लेनेका प्रभावपूर्ण साधन केवल खादी है। इसीलिए मैं आपसे इस आन्दोलनको सफल बनानेके लिये कहता आ रहा हूँ। आपको ब्रह्मचर्यका दृढ़तासे पालन करना चाहिये—जो सारी शक्तिका स्रोत है। केवल इस तरह आप अपने आपको इस महान् संघर्षके लिये तैयार करनेकी आशा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत कर्मभूमि, धर्मभूमि और त्यागभूमि है। हिमालय इस तथ्य के साक्षीके रूपमें खड़ा है। परन्तु सब कुछ ब्रह्मचर्यके दृढ़ पालनपर निर्भर करता है। यदि आप एक बार फिर भारत में धर्म-राज्य की स्थापना करना चाहते हैं तो आपको सचाई, न्याय-परायणता और ब्रह्मचर्यकी राहपर चलना होगा। ईश्वरके सिवाय अन्य किसीसे डरना नहीं होगा और उसे अपना मित्र और पथ-प्रदर्शक समझकर आगे बढ़ना होगा।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, ३०-१-१९२७