१८. टिप्पणियाँ
एक भली अंग्रेज महिला
उन थोड़ेसे लोगोंके अलावा जो कुमारी फ्लोरेन्स विंटरबॉटमसे निजी तौरपर सम्पर्क में आये, भारतमें अन्य लोग इस भली अंग्रेज महिलाके बारेमें कुछ नहीं जानते। एक मित्रने इंग्लैंडसे सूचना भेजी है कि उनका अभी-अभी देहावसान हो गया है। जो स्त्री और पुरुष केवल सेवाके भावसे सेवा करते हैं वे उनमें से एक थीं। वे अंग्रेजोंके उस वर्ग के लोगों में से थीं जो तिरस्कार, उपहास और विरोधके बावजूद उपेक्षित सेवा-क्षेत्रोंकी तलाश करके उन्हें अपना लेते हैं। वे एथिकल मूवमेन्ट (नैतिक-आन्दोलन) के मार्गदर्शनके लिए प्रकाशरूप थीं और कुछ समयतक यूनियन ऑफ एथिकल सोसायटीकी अध्यक्ष भी रहीं थी। वे एमर्सन क्लबकी सचिव थीं। मुझे सन् १९०६ में उनके सम्पर्क में आनेका सौभाग्य उस समय प्राप्त हुआ था जब मैं दक्षिण आफ्रिकाके प्रथम भारतीय शिष्टमण्डलको लेकर इंग्लैंड गया था। मैं उनके बारेमें कुछ नहीं जानता था, किन्तु उन्होंने लन्दनके प्रमुख दैनिकोंके किन्हीं महत्त्वहीन कोनोंमें पड़ी हुई शिष्ट-मण्डलकी कार्रवाई से सम्बन्धित खबरें पढ़कर हमें ढूँढ़ लिया। उन्होंने मेरे भाषण कराने के लिए सभाएँ कीं; उक्त समस्याका अध्ययन किया और उन्होंने कई तरहसे हमारे पक्षका समर्थन किया। यह उस समयकी बात है जब इंग्लैंडमें हमारा समर्थन करनेवाले लोग गिने-चुने थे। फिर तो वे दक्षिण-आफ्रिकाके हमारे मामलेमें लगातार कष्ट उठाकर हमारे हितोंका ध्यान रखनेवाली पक्षपोषिका बन गईं। उनके सम्पर्क में आनेवाले सभी लोगोंने देखा होगा कि वे कितनी निर्भय थीं और सत्यका पालन केवल नीतिके रूपमें नहीं, बल्कि सत्यके खातिर ही करती थीं। वे सब बातोंपर असाधारण रूपसे निष्पक्ष होकर विचार कर सकती थीं। यद्यपि इंग्लैंडके प्रति उनकी भक्ति अडिग थी, किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय मामलोंके प्रति भी उनकी भक्ति उतनी ही पक्की थी। उनकी देशभक्ति ऐसी तो थी ही नहीं कि वे इंग्लैंडकी हर अच्छी बुरी चाहे जैसी बातको उचित ही कहें। जब लोग मुझसे यह कहते हैं कि अंग्रेज लोगोंपर अहिंसाका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है तब कुमारी फ्लोरेन्स विंटरबॉटम और उनके जैसे अन्य व्यक्तियोंके उदाहरणोंका खयाल करके अहिंसामें, अंग्रेजोंके स्वभावमें—अथवा उसे मानवका स्वभाव कहें तो और भी अच्छा—मेरी श्रद्धा और भी बढ़ जाती है। परमात्मा उनकी आत्माको शान्ति दे।
अस्पतालों में खादी
अखिल भारतीय चरखा संघके बम्बईके खादी भण्डारने खादीके सम्बन्धमें अत्यन्त मनोरंजक जानकारीसे भरी हुई एक बहुत ही सादा और सुन्दर गुजराती पुस्तिका प्रकाशित की है। इस पुस्तिकाके ६२ वें और ६३ वें पृष्ठोंपर इस बातका उल्लेख