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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बनना होगा। अगर उन्हें चरखेमें विश्वास न हो तो उन्हें साफ कह देना चाहिए और अपने मालिकोंको छोड़ देना चाहिए। अगर वे माता-पिता, जो लड़कोंको शालाओं में भेजते हैं, चरखेमें विश्वास नहीं रखते और लड़कोंका सूत कातना, उसे सीखना या उसका अभ्यास करना पसन्द नहीं करते तो शिक्षक ऐसे लड़कोंको शालाओं में लेने से इनकार कर दें। किन्तु यदि वे सूत कताईको राष्ट्रीय शिक्षाका एक आवश्यक अंग समझते हों तो वे चरखा-विज्ञान और कताई-कलाको खुद अच्छी तरह सीख लें और लड़कों को भी इसे उसी प्रकार सिखायें जिस प्रकार वे अन्य दूसरे विषय सिखाते हैं। उन्हें यह कहने का हक नहीं है कि शिष्य कातना नापसन्द करते हैं। पाठ्य-विषयको रोचक बनाना शिक्षकका काम है। मैं रसायनशास्त्रसे घृणा करता था; क्योंकि मेरे शिक्षकको ही वह विषय इतना न आता था कि वे उसे रोचक बना सकें। बादमें मैंने उसे सीखा और देखा कि वह बहुत ही रोचक विषय है। रेखागणित-जैसे बहुत ही मनोरंजक विषयको सैकड़ों लड़के सिर्फ इसलिए हस्तगत नहीं कर पाते कि स्वयं शिक्षकोंको अपने काममें रुचि नहीं है, और उन्होंने इस विषय में अपनी रुचि यथेष्ट रूपसे नहीं बढ़ाई है। कताईके बारेमें भी यही बात है। मैंने कोई भी चतुर कतैया ऐसा नहीं देखा है जो मनबहलावके तौरपर भी सूत कातनेको रुचिकर और ऊँचा उठानेवाला विषय न मानता हो। पियानोपर सिर्फ पैंपां करनेसे तो पियानो सुनने में अत्यन्त रुचि रखनेवाले मनुष्यके सिरमें भी दर्द हो सकता है; और जिसे उसमें कुछ भी रुचि नहीं है, कुशल वादकका पियानो बजाना उसे भी अपनी ओर खींच लेगा। चरखेके सम्बन्धमें भी ऐसी ही बात है। यहाँ मेरा मतलब चरखेका मनबहलाव करनेकी शक्ति दिखाना नहीं है; बल्कि इस सच्चाईको प्रकाशमें लाना है कि अगर राष्ट्रीय शालाओं में चरखा चलाना सिखाना है तो इसके लिए ऐसे ही शिक्षक चाहिए जो चरखा चलाना बहुत अच्छी तरह जानते हों और जो अपने शिष्योंको यह कला धैर्यपूर्वक सिखा सकें। हम अपने ही अज्ञान या उदासीनतासे अपने छात्रोंमें ऐसी एक कलाके प्रति घृणा पैदा न कर दें, जो राष्ट्रके लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।

ईमानदारीका तकाजा है कि जिन शिक्षकोंको कातना न आता हो या जिनका उसमें विश्वास न हो, वे नौकरी भले ही छूट जाये मगर साफ-साफ कह दें कि वे अपने स्कूलोंमें चरखेका कोई काम नहीं करेंगे। अगर हम सच्चे हैं तो अन्तमें यह हमारे लिए लाभदायक ही सिद्ध होगा। किन्तु अगर हम सच्चे नहीं हैं तो फिर हमारा कल्याण असम्भव है। हाथ कताई जैसे इस महान आन्दोलनकी सफलता एकमात्र कार्यकर्त्ताओंके चारित्र्यपर ही निर्भर है; किन्तु अगर कार्यकर्त्तागण ढोंग करनेपर तुल जायेंगे तो वह सफल नहीं हो सकता। मैं लगे हाथों राष्ट्रीय शालाओंके प्रबन्धकोंको यह भी याद दिला दूँ कि अन्तमें तकली चरखेसे अधिक लाभदायक और अच्छी सावित होगी। अच्छा सूत कातनेवाले लड़कोंको अच्छे चरखे दिये जा सकते हैं, बशर्ते कि वे हर महीने कमसे कम कुछ सूत ऐसा कातनेका जिम्मा लें, जो एक-सा और मजबूत हो।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २७-१-१९२७