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भाषण: खड़गपुर में
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‘बिना ज्ञानके समझना’

एक मित्रने मुझे अपने मौनवारपर उपयोग करनेके लिए कुछ उद्धरण भेजे हैं। मैं यहाँ इनमें से एक उद्धरण, जो हीरोथियसकी रचनामें से लिया गया है, पाठकोंके उपयोगके लिए दे रहा हूँ:

जो शब्द और ज्ञानसे परे है उसे बिना शब्दोंके कहना और बिना ज्ञानके समझना ही मुझे ठीक लगता है। मैं समझता हूँ कि रहस्यपूर्ण नीरवता और रहस्यमयी शान्तिमें ही समस्त रूपोंका विलय होता है; अतः तू मौन रहकर रहस्यमय ढंगसे उस महाप्रभुसे पूर्ण और पुरातन सम्बन्ध स्थापित कर।
[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २७-१-१९२७
 

१९. भाषण: खड़गपुरमें[१]

२७ जनवरी, १९२७

महात्माजीने मानपत्र भेंट करनेके लिए संस्थाओंको धन्यवाद दिया, परन्तु समयकी कमी के कारण सभीको अलग-अलग उत्तर देने में असमर्थता प्रकट की। उन्होंने कहा कि मानपत्रों में उल्लिखित विषयोंपर अपने विचार मैं अन्य भाषणोंमें व्यक्त कर चुका हूँ। उन्होंने श्रोताओंसे उन भाषणोंको समाचारपत्रों में से पढ़ लेनेका अनुरोध किया।

महात्माजीने राष्ट्रीय पाठशालाको सुव्यवस्थित ढंगसे चलानेके लिए खड़गपुरके लोगोंको धन्यवाद दिया और कहा कि मुझे आशा है कि आप इसको इसी तरह चलाते रहेंगे। मुझे खेद है कि आज प्रातःकाल खड़गपुरके कुछ लोगोंने मेरे पास आवेदन भेजा है, जिसमें प्रार्थना की गई है कि इस पाठशालाको सरकारी विश्वविद्यालयके साथ फिरसे सम्बद्ध करने की अनुमति दी जाए। परन्तु पूछताछ करनेपर संस्थाके विरोध में कोई भी मुझे कुछ नहीं बता सका। केवल एक यही दलील वे दे पाए कि बहिष्कार मात्र असफल रहे हैं। और जब वकील और परिषद के सदस्य अदालतों और कौन्सिल में वापस चले गये हैं, तब विद्यार्थियोंको भी [सरकारी विद्यालयोंमें] वापस जाने की अनुमति मिल जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं नहीं समझता कि कोई व्यक्ति अपनी अन्तरात्मा आदेशको न मानकर दूसरे गलत लोगोंका अनुसरण इसलिए क्यों करे कि वे गिनती में ज्यादा हैं। मनुष्यका यह कर्त्तव्य है कि सार्वभौम विरोधके बावजूद वह सचाईपर दृढ़ रहे। उन्होंने उन विद्यार्थियों और अध्यापकोंको बधाई दी, जो अब भी राष्ट्रीय-शिक्षाके आदर्शको ग्रहण किये हुए हैं। कोई मानवीय संस्था ऐसी

  1. यह भाषण यूनियन कमेटी, सन्थाल, हिन्दूसभा, गोशाला और आर्य समाज द्वारा दिये गये मानपत्रों के उत्तर में दिया गया था।